रामधारी सिंह दिनकर जी की सुप्रसिद्द कविताएं



24 सितंबर 1908 को बिहार राज्य (State) के बेगूसराय जिले (District) में जन्मे रामधारी सिंह दिनकर हिंदी के बहुत ही प्रभावी कवि (Poet), प्रमुख लेखक (Author) व निबंधकार (Essayist) के रूप में जाने जाते है | दिनकर जी अपने समय के सबसे श्रेष्ठ वीर रस के कवियों में सुमार किये जाने वाले कवि रहे है | स्वतन्त्रता (Freedom) से पूर्व दिनकर जी एक विद्रोही व् आक्रोशित कवि के रूप में जाने गए तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उनको राष्ट्रकवि का भी दर्जा प्रदान किया गया | उन्हें पहली पीढ़ी का छायावादोत्तर कवि कहा गया |

एक तरफ उनके काव्यों में ओज, विद्रोह ,आक्रोश और क्रांति की पुकार थी, तो वही दूसरी और उन्हें कोमल श्रृंगारिक भावनाओ वाला कवि भी कहा गया | ‘दिनकर’ जी की कुरुक्षेत्र व् उर्वशी नामक कृतियों में उनकी दोनों प्रवृतियों का चरम उत्कर्ष देखने को मिलता है | दिनकर जी ने बी.ए. (B.A.) की डिग्री प्राप्त कर एक विद्यालय में अध्यापक के पद पर कार्य किया | रामधारी सिंह दिनकर को अनेक भाषाओ जैसे – संस्कृत , बांग्ला , अंग्रेजी, और उर्दू भाषा में महारत हासिल थी | इसके साथ ही ‘दिनकर’ जी ने अनेक प्रमुख कविताएँ भी लिखी | यदि आप भी दिनकर जी की प्रसिद्द कविताओं के बारे में जानना चाहते है तो यहाँ आपको Ramdhari Singh Dinkar Poems in Hindi, रामधारी सिंह दिनकर जी की सुप्रसिद्द कविताएं के बारे में जानकारी दी गई है |

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रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी द्वारा लिखित कुछ सुप्रसिद्ध कविताएँ (Some Famous Poems Written by Ramdhari Singh ‘Dinkar’)

1. कलम, आज उनकी जय बोल

जला अस्थियाँ बारी-बारी

चिटकाई जिनमें चिंगारी,

जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर

लिए बिना गर्दन का मोल

कलम, आज उनकी जय बोल.

जो अगणित लघु दीप हमारे

तूफानों में एक किनारे,

जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन

माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल

कलम, आज उनकी जय बोल. 

पीकर जिनकी लाल शिखाएँ

उगल रही सौ लपट दिशाएं,

जिनके सिंहनाद से सहमी

धरती रही अभी तक डोल

कलम, आज उनकी जय बोल. 

अंधा चकाचौंध का मारा

क्या जाने इतिहास बेचारा,

साखी हैं उनकी महिमा के

सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल

कलम, आज उनकी जय बोल. 

कबीर दास के दोहे अर्थ सहित

2. हमारे कृषक :-

जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है

छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है

मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है

वसन कहाँ? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है 

बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं

बंधी जीभ, आँखें विषम गम खा शायद आँसू पीते हैं 

पर शिशु का क्या, सीख न पाया अभी जो आँसू पीना

चूस-चूस सूखा स्तन माँ का, सो जाता रो-विलप नगीना 

विवश देखती माँ आँचल से नन्ही तड़प उड़ जाती

अपना रक्त पिला देती यदि फटती आज वज्र की छाती |

कब्र-कब्र में अबोध बालकों की भूखी हड्डी रोती है

दूध-दूध की कदम-कदम पर सारी रात होती है |

दूध-दूध औ वत्स मंदिरों में बहरे पाषान यहाँ है

दूध-दूध तारे बोलो इन बच्चों के भगवान कहाँ हैं |

दूध-दूध गंगा तू ही अपनी पानी को दूध बना दे

दूध-दूध उफ कोई है तो इन भूखे मुर्दों को जरा मना दे |

दूध-दूध दुनिया सोती है लाऊँ दूध कहाँ किस घर से

दूध-दूध हे देव गगन के कुछ बूँदें टपका अम्बर से 

हटो व्योम के, मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं

दूध-दूध हे वत्स! तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं. 

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3. रोटी और स्वाधीनता:-

आजादी तो मिल गई, मगर, यह गौरव कहाँ जुगाएगा ?

मरभुखे ! इसे घबराहट में तू बेच न तो खा जाएगा ?

आजादी रोटी नहीं, मगर, दोनों में कोई वैर नहीं,

पर कहीं भूख बेताब हुई तो आजादी की खैर नहीं।

हो रहे खड़े आजादी को हर ओर दगा देनेवाले,

पशुओं को रोटी दिखा उन्हें फिर साथ लगा लेनेवाले।

इनके जादू का जोर भला कब तक बुभुक्षु सह सकता है ?

है कौन, पेट की ज्वाला में पड़कर मनुष्य रह सकता है ?

झेलेगा यह बलिदान ? भूख की घनी चोट सह पाएगा ?

आ पड़ी विपद तो क्या प्रताप-सा घास चबा रह पाएगा ?

है बड़ी बात आजादी का पाना ही नहीं, जुगाना भी,

बलि एक बार ही नहीं, उसे पड़ता फिर-फिर दुहराना भी।

रहीम दास जी के दोहे हिंदी में अर्थ सहित

4. सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है:-

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है,

शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते,

विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं।

मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं,

जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं,

शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को।

है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ?

खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़।

मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।

गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर,

मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो।

बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है।

पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड, झरती रस की धारा अखण्ड,

मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार।

जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं।

वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ?

अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ ?

जिसने न कभी आराम किया, विघ्नों में रहकर नाम किया।

जब विघ्न सामने आते हैं, सोते से हमें जगाते हैं,

मन को मरोड़ते हैं पल-पल, तन को झँझोरते हैं पल-पल।

सत्पथ की ओर लगाकर ही, जाते हैं हमें जगाकर ही।

वाटिका और वन एक नहीं, आराम और रण एक नहीं।

वर्षा, अंधड़, आतप अखंड, पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।

वन में प्रसून तो खिलते हैं, बागों में शाल न मिलते हैं।

कंकरियाँ जिनकी सेज सुघर, छाया देता केवल अम्बर,

विपदाएँ दूध पिलाती हैं, लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।

जो लाक्षा-गृह में जलते हैं, वे ही शूरमा निकलते हैं।

बढ़कर विपत्तियों पर छा जा, मेरे किशोर! मेरे ताजा!

जीवन का रस छन जाने दे, तन को पत्थर बन जाने दे।

तू स्वयं तेज भयकारी है, क्या कर सकती चिनगारी है?

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5. ध्वज-वंदना:-

नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो

नमो नगाधिराज-शृंग की विहारिणी नमो अनंत सौख्य-शक्ति-शील-धारिणी

प्रणय-प्रसारिणी, नमो अरिष्ट-वारिणी

नमो मनुष्य की शुभेषणा-प्रचारिणी

नवीन सूर्य की नई प्रभा, नमो, नमो

नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो

हम न किसी का चाहते तनिक, अहित, अपकार

प्रेमी सकल जहान का भारतवर्ष उदार

सत्य न्याय के हेतु, फहर फहर ओ केतु

हम विरचेंगे देश-देश के बीच मिलन का सेतु

पवित्र सौम्य, शांति की शिखा, नमो, नमो

नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो

तार-तार में हैं गुंथा ध्वजे, तुम्हारा त्याग

दहक रही है आज भी, तुम में बलि की आग

सेवक सैन्य कठोर, हम चालीस करोड़

कौन देख सकता कुभाव से ध्वजे, तुम्हारी ओर

करते तव जय गान, वीर हुए बलिदान

अंगारों पर चला तुम्हें ले सारा हिन्दुस्तान!

प्रताप की विभा, कृषानुजा, नमो, नमो!

नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!

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