Atal Bihari Vajpayee Poems in Hindi



अटल बिहारी वाजपेयी देश के महान प्रधान मंत्री के साथ – साथ एक महान कवि भी थे | जिन्होंने अपने जीवन काल में अनेक कविताओं की रचनाये भी की | यह भारत के दो बार प्रधानमंत्री रहे, और उनका कार्यकाल 16 मई से 1 जून 1996 तक तथा दूसरा 19 मार्च 1998 से मई 2004 तक रहा | यह हिंदी कवि के प्रखर प्रवक्ता व पत्रकार भी थे | जिन्होंने अपने समय में राष्ट्रधर्म, वीर अर्जुन तथा राष्ट्रीय भावना से जुड़ी अनेक पत्र – पत्रिकाओं का संपादन भी किया |

अटल बिहारी जी को कविताये लिखने का भी बहुत अधिक शौक था | उनकी कविताये इतनी प्रभावी होती थी कि वह कई बार अपनी कविताओं से ही अपने विरोधियो का मुँह बंद कर देते थे | अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय संसद के सदस्य के साथ – साथ लोकसभा ,निचले सदन दस बार तथा राज्य सभा दो बार ऊपरी सदन में चुने गए | अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अनेक कविताओं की भी रचनाये की है | यदि आप भी Atal Bihari Vajpayee Poems in Hindi, अटल बिहारी वाजपेयी की प्रसिद्द कविताये कौन सी है, इसके बारे में जानना चाहते है तो यहाँ पर इसके बारे में बताया जा रहा है |

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अटल विहारी वाजपेयी जी से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी (Some Important Information Related to Atal Vihari Vajpayee Ji )

अटल बिहारी वाजपेयी जी बटेश्वर के मूल निवासी पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी जी के पुत्र थे, जो कि मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक के पद पर कार्यरत थे | अटल बिहारी जी ने 25 दिसंबर सन 1924 में अपनी माता सहधर्मिणी कृष्ण वाजपेयी की कोख से जन्म लिया | इनके पिता जी अध्यापन कार्य के साथ ही हिंदी व ब्रज भाषा के कवि भी थे | कहा जाता है कि इनमे काव्य के गुण पिता जी से ही प्राप्त हुए | अटल बिहारी वाजपेयी जी ने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की |

छात्र जीवन से ही इन्होने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य तथा स्वयंसेवक बने और राष्ट्रीय वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेते रहे | सन् 1977 से 1979 तक जब देश में मोरारजी सरकार थी, तब तक यह विदेश मंत्री के पद पर रहे और विदेशो में भारत की छवि बनायीं | देश के कई उच्च पदों पर कार्य करने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी जी वर्ष 1996 में  देश के प्रधानमंत्री बन देश की बागडोर संभाली | वर्ष 1998 में 11 और 13 मई को अटल जी कि सरकार ने पोखरण में पांच सफल भूमिगत परिक्षण कर भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया | अटल बिहारी वाजपेयी जी एक बहुत ही सफल प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक कार्यो को सफल किया |

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अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लिखित कुछ प्रसिद्ध कविताये (Some Famous Poems Written By Atal Bihari Vajpayee)

आओ फिर से दिया जलाएँ :-

आओ फिर से दिया जलाएँ

भरी दुपहरी में अँधियारा

सूरज परछाई से हारा

अंतरतम का नेह निचोड़ें-

बुझी हुई बाती सुलगाएँ।

आओ फिर से दिया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल

लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल

वर्त्तमान के मोहजाल में-

आने वाला कल न भुलाएँ।

आओ फिर से दिया जलाएँ।

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा

अपनों के विघ्नों ने घेरा

अंतिम जय का वज़्र बनाने-

नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ।

आओ फिर से दिया जलाएँ |

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मौत से ठन गई :-

ठन गई!

मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था।

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,

यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,

ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,

लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,

सामने वार कर, फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,

शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,

दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,

न अपनों से बाक़ी है कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,

आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,

नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,

देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई|

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पहचान:-

आदमी न ऊंचा होता है, न नीचा होता है,

न बड़ा होता है, न छोटा होता है।

आदमी सिर्फ आदमी होता है।

पता नहीं, इस सीधे-सपाट सत्य को

दुनिया क्यों नहीं जानती है?

और अगर जानती है,

तो मन से क्यों नहीं मानती

इससे फर्क नहीं पड़ता

कि आदमी कहां खड़ा है?

पथ पर या रथ पर?

तीर पर या प्राचीर पर?

फर्क इससे पड़ता है कि जहां खड़ा है,

या जहां उसे खड़ा होना पड़ा है,

वहां उसका धरातल क्या है?

हिमालय की चोटी पर पहुंच,

एवरेस्ट-विजय की पताका फहरा,

कोई विजेता यदि ईर्ष्या से दग्ध

अपने साथी से विश्वासघात करे,

तो उसका क्या अपराध

इसलिए क्षम्य हो जाएगा कि

वह एवरेस्ट की ऊंचाई पर हुआ था?

नहीं, अपराध अपराध ही रहेगा,

हिमालय की सारी धवलता

उस कालिमा को नहीं ढ़क सकती।

कपड़ों की दुधिया सफेदी जैसे

मन की मलिनता को नहीं छिपा सकती।

किसी संत कवि ने कहा है कि

मनुष्य के ऊपर कोई नहीं होता,

मुझे लगता है कि मनुष्य के ऊपर

उसका मन होता है।

छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता,

टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता।

इसीलिए तो भगवान कृष्ण को

शस्त्रों से सज्ज, रथ पर चढ़े,

कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े,

अर्जुन को गीता सुनानी पड़ी थी।

मन हारकर, मैदान नहीं जीते जाते,

न मैदान जीतने से मन ही जीते जाते हैं।

चोटी से गिरने से

अधिक चोट लगती है।

अस्थि जुड़ जाती,

पीड़ा मन में सुलगती है।

इसका अर्थ यह नहीं कि

चोटी पर चढ़ने की चुनौती ही न माने,

इसका अर्थ यह भी नहीं कि

परिस्थिति पर विजय पाने की न ठानें।

आदमी जहां है, वही खड़ा रहे?

दूसरों की दया के भरोसे पर पड़ा रहे?

जड़ता का नाम जीवन नहीं है,

पलायन पुरोगमन नहीं है।

आदमी को चाहिए कि वह जूझे

परिस्थितियों से लड़े,

एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढ़े।

किंतु कितना भी ऊंचा उठे,

मनुष्यता के स्तर से न गिरे,

अपने धरातल को न छोड़े,

अंतर्यामी से मुंह न मोड़े।

एक पांव धरती पर रखकर ही

वामन भगवान ने आकाश-पाताल को जीता था।

धरती ही धारण करती है,

कोई इस पर भार न बने,

मिथ्या अभियान से न तने।

आदमी की पहचान,

उसके धन या आसन से नहीं होती,

उसके मन से होती है।

मन की फकीरी पर

कुबेर की संपदा भी रोती है।

भारत के प्रधानमंत्री की सूची

खून क्यों सफेद हो गया?

भेद में अभेद खो गया.

बंट गये शहीद, गीत कट गए,

कलेजे में कटार दड़ गई.

दूध में दरार पड़ गई.

खेतों में बारूदी गंध,

टूट गये नानक के छंद

सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है.

वसंत से बहार झड़ गई

दूध में दरार पड़ गई.

अपनी ही छाया से बैर,

गले लगने लगे हैं ग़ैर,

ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता.

बात बनाएं, बिगड़ गई.

दूध में दरार पड़ गई |

NDA और UPA क्या है?

कौरव कौन:-

कौरव कौन

कौन पांडव,

टेढ़ा सवाल है|

दोनों ओर शकुनि

का फैला

कूटजाल है|

धर्मराज ने छोड़ी नहीं

जुए की लत है|

हर पंचायत में पांचाली

अपमानित है|

बिना कृष्ण के आज

महाभारत होना है,

कोई राजा बने,

रंक को तो रोना है |

एनएसए (NSA) क्या है

पुनः चमकेगा दिनकर:-

आज़ादी का दिन मना,

नई ग़ुलामी बीच;

सूखी धरती, सूना अंबर,

मन-आंगन में कीच;

मन-आंगम में कीच,

कमल सारे मुरझाए;

एक-एक कर बुझे दीप,

अंधियारे छाए;

कह क़ैदी कबिराय

न अपना छोटा जी कर;

चीर निशा का वक्ष

पुनः चमकेगा दिनकर।

भारत में कुल कितने क्रिकेट स्टेडियम है

मंत्रिपद तभी सफल है:-

बस का परमिट मांग रहे हैं,

भैया के दामाद;

पेट्रोल का पंप दिला दो,

दूजे की फरियाद;

दूजे की फरियाद,

सिफारिश काम बनाती;

परिचय की परची,

किस्मत के द्वार खुलाती;

कह कैदी कविराय,

भतीजावाद प्रबल है;

अपनों को रेवड़ी,

मंत्रिपद तभी सफल है!

एसपीजी (SPG) कमांडो कैसे बने

गीत नया गाता हूँ:-

गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर

पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर

झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात

प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूँ

गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी

अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी

हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ

गीत नया गाता हूँ |

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKY) क्या है

जीवन बीत चला:-

जीवन बीत चला

कल कल करते आज

हाथ से निकले सारे

भूत भविष्य की चिंता में

वर्तमान की बाज़ी हारे

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हानि लाभ के पलड़ों में

तुलता जीवन व्यापार हो गया

मोल लगा बिकने वाले का

बिना बिका बेकार हो गया

मुझे हाट में छोड़ अकेला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला |

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान

दिल्ली के दरबार में:-

दिल्ली के दरबार में,

कौरव का है ज़ोर;

लोक्तंत्र की द्रौपदी,

रोती नयन निचोर;

रोती नयन निचोर

नहीं कोई रखवाला;

नए भीष्म, द्रोणों ने

मुख पर ताला डाला;

कह कैदी कविराय,

बजेगी रण की भेरी;

कोटि-कोटि जनता

न रहेगी बनकर चेरी ।

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