यदि किसी देश की अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट हो रही है, तो इसे आर्थिक मंदी कहा जाता है | जब किसी अर्थव्यवस्था की विकास दर या जीडीपी तिमाही-दर-तिमाही लगातार गिरती ही जा रही है, तो ऐसी स्थिति को आर्थिक मंदी का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है, जिसका काफी प्रभाव देश की स्थिति पर भी दिखाई देता है | आर्थिक मंदी में वस्तुओं की डिमांड कम हो जाती है, जिससे उत्पादित माल की बिक्री में काफी गिरावट आ जाती है |
जब वस्तुओं की बिक्री नहीं होती है तो, इसका पूरा प्रभाव उत्पादित करने वाली कंपनियों पर पड़ता है क्योंकि, मंदी की वजह से उन कंपनियों को भारी नुकसान चुकाना पड़ जाता है | यहाँ पर आपको आर्थिक मंदी क्या होती है, कारण, प्रभाव के विषय में विस्तृत जानकारी प्रदान की जा रही है |
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आर्थिक मंदी क्या है?
आर्थिक मंदी ऐसी स्थिति होती है, जब लोगों के पास अपनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए पैसों की कमी हो जाती है, जिससे वह अपनी जरूरत मंद चीजों की भी खरीदारी नहीं कर पाते है और वो अपनी जरूरतों को पैसों की अनुसार कम करनी की कोशिश करते है, तो इसका सीधा प्रभाव उत्पादित कंपनियों पर दिखाई देने लगता है क्योंकि, लोगों द्वारा खरीद दारी कम करने से उत्पादित माल की बिक्री भी कम हो जाती है, जिससे कम्पनी को कम लाभ प्राप्त होता है, इसलिए कम्पनी भी अपने लाभ को देखते हुए कर्मचारियों को रखती है जिससे बड़ी- बड़ी कंपनियों में कर्मचारियों की बड़ी मात्रा में छंटनी की जाती है, कंपनियों में छंटनी होने की वजह से लाखों की संख्या में लोग बेरोजगार हो जाते है, जिसका सीधा असर उनके परिवार पड़ता है क्योंकिं, उनके पास खाने की कमी हो जाती है | इससे वो परिवार कुपोषण का शिकार हो जाते है, और देश में अन्य कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है |
विश्व आर्थिक मंदी क्या है?
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निरंतर वस्तुओ और सेवाओ के उत्पादन में गिरावट हो और साथ ही में सकल घरेलू उत्पाद कम से कम तीन महीने डाउन ग्रोथ में पहुंच जाता है, तो ऐसी स्थिति को ही विश्व आर्थिक मन्दी का रूप दे दिया जाता है, जिसे विश्व आर्थिक मंदी कहते है | इसका प्रभाव दुनिया भर के देशो पर दिखाई देता है, जिससे कई देशों के विकास दर में गिरावट आ जाती है |
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आर्थिक मंदी के क्या कारण है?
- आर्थिक मंदी के कारण धन का प्रवाह रुक जाता है | धन के प्रवाह से आशय है कि,लोगों की खरीदने की क्षमता भी कम हो जाती है, जिससे उनकी बचत भी कम हो पाती है |
- अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में अधिक मात्रा में बढ़ोत्तरी हो जाती है जिससे, महंगाई दर काफी ऊंचाई तक पहुंच जाती है | इसी वजह से लोग अपनी आवश्यकता की चीजे भी नहीं खरीद पाते है |
- आर्थिक मंदी का मुख्य कारण डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में गिरावट होना |
- आयात के मुकाबले निर्यात में गिरावट हो जाती है जिससे, देश के राजकोषीय स्तर में बढ़ोत्तरी हो जाती है और इसी वजह से विदेशी मुद्रा भंडार में कमी हो जाती है |
- इस समय अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर के कारण दुनिया में आर्थिक मंदी का खतरा बढ़ता ही जा रहा है, जिसका काफी प्रभाव भारत पर पड़ रहा है |
- मंदी के समय लोगों की आय कम होने की वजह से इसमें भी निवेश कम हो जाता है |
आर्थिक मंदी का प्रभाव
- आर्थिक मंदी से बेरोजगारी में वृद्धि हो जाती है |
- लोगों के पास आवश्यकता अनुसार पैसों की कमी हो जाती है |
- आर्थिक विकास दर में निरंतर गिरावट बनी रहती है |
- औद्योगिक उत्पादन में गिरावट हो जाती है |
- कर्ज की मांग काफी कम हो जाती है |
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