वर्तामन समय में बड़ी -बड़ी कंपनियों के ऊपर छानबीन जारी है, ये ऐसी कंपनियां है, जो मुख्य रूप से बैंकों से लोन के रूप एक लम्बी राशि प्राप्त कर लेते हैं, लेकिन इसके बाद ये पैसे हो जाने के बावजूद भी लोन का किश्त नहीं चुकाती है, तो अब ऐसे कंपनियों को लेकर आरबीआई के विलफुल डिफॉल्टर्स की सूची पर राजनीति तेज हो गई है, उनमें से अधिकतर मामले ऐसे है, जिनपर विभिन्न एजेंसियां पहले से कार्रवाई कर रही हैं। इससे पहले नीरव मोदी और मेहुल चोकसी तथा जतिन मेहता के अधिकतर मामलों में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी और केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई के साथ-साथ कई अन्य एजेंसियों द्वारा प्रत्यर्पण से लेकर रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने तक की कार्रवाई शुरू कर दी गई थी औरअब रिकवरी के लिए उनके खिलाफ अन्य कानूनी कार्रवाई की प्रकिया जारी कर दी गई है |

वहीं, जो विपक्ष लोन राइट ऑफ कर रहा है, यानी जो विपक्ष बट्टा खाते में डालने का काम पूरा कर दे रहा है, उसे कर्ज माफ करने की तरह पेश किया जा रहा है | इसलिए यदि आप बट्टा खाता (Write Off, कर्ज माफी (Loan Waiver) के विषय में जानना चाहते हैं, तो यहाँ पर आपको बट्टा खाता (Write Off, कर्ज माफी (Loan Waiver) क्या होता है , कर्ज माफी और राइट ऑफ में अंतर ? इसके विषय में पूरी जानकारी प्रदान की जा रही है |
विलफुल डिफॉल्टर का क्या मतलब है
बट्टा खाता (Write Off, कर्ज माफी (Loan Waiver) का क्या मतलब होता है ?
जब किसी कर्ज को बट्टा खाते में डालते हैं, तो बैंक को उस कर्ज का कुछ भी मूल्य मिलने की उम्मीद नहीं रह जाती है और इसके बाद उसे वसूली के लिए कानूनी प्रक्रिया की मदद लेनी पड़ जाती है | जब बैंक द्वारा वसूली की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है, तो इस प्रक्रिया में उसे अक्सर कुछ न कुछ रकम वापस प्राप्त हो जाती है, लेकिन बैंक के सामने कुछ मामले ऐसे भी आ जाते हैं, जिनमे उसे कई मामलों में बिलकुल भी रकम नहीं प्राप्त हो पाती है। बट्टा खाते में उन कर्ज को शामिल किया जाता है जिनके चुकाने का सामर्थ्य तो कर्जदार में होता है, लेकिन वह पहले तो नहीं चुकाने के तरह-तरह के बहाने बनाता है, और फिर वह उस कर्ज नहीं जमा करता है लेकिन विल्फुल डिफॉल्टर्स के कर्ज में किसी भी प्रकार की माफी नहीं दी जाती है | बल्कि उन्हें बट्टा खाते में डाल वसूली प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है |
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कर्ज माफी और राइट ऑफ में अंतर
कर्ज माफी
कर्ज माफी वह प्रक्रिया होती है, जिसके तहत सरकार या बैंक कर्जदार की वित्तीय स्थिति का आकलन करती है और यह सुनिश्चित करती है, कि कर्जदार ने मजबूरी में कर्ज नहीं चुकाया या किसी कारण वश नहीं चुका सकता है, तो उसके कर्ज को माफ कर देते हैं। इसका अर्थ यह निकलता है कि, उसकी देनदारी खत्म मान ली जाती है और फिर उससे वसूली करना भी बंद कर दिया जाता है | इसके बाद उसकी भरपाई अधिकतर मामलों में सरकार द्वारा की जाती है। भूकंप, बाढ़ या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ किसानों के समक्ष पेश होने वाली मुसीबतों में सरकार अक्सर कर्जदारों के किसी वर्ग का कर्ज माफ कर ही देती है तो वहीं कई बार ऐसा होता हैं कर्जदारों की तरपह से कई किश्ते भर दी जाने के बाद बैंक आभार के तौर पर उनकी कुछ किस्तें माफ कर दी जाती है |
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राइट ऑफ
जब किसी कर्ज को बट्टा खाते में डालते हैं तो बैंक को उस कर्ज का कुछ भी मूल्य मिलने की उम्मीद नहीं होती है और फिर वह वसूली के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू कर देता है | वसूली करने के बाद उसे अक्सर कुछ न कुछ रकम वापस मिल जाती है | तो ऐसी प्रक्रिया को राइट ऑफ कहा जाता है |
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