Lord Shiva Avatar Names in Hindi – सनातनी हिंदू देवी देवता समय-समय पर विभिन्न अवतार (Incarnation) लेते रहते हैं जिनके अलग-अलग नाम होते हैं। भगवान भोलेनाथ भी ऐसे ही देवता हैं जिन्होंने समय की नजाकत को देखते हुए कई अवतार ग्रहण किए, जिनमें से किसी अवतार को काल भैरव कहा गया तो किसी अवतार को वीरभद्र कहां गया तो किसी को पिप्पलाद और नंदी अवतार कहा गया। सावन में जपें शिव जी के 108 नाम, हर कदम पर मिलेगी सफलता और जानिए पूरी जानकारी|
इस प्रकार से भोलेनाथ जी ने हर युग में अलग-अलग नामों से अवतार लिए। इस पेज पर हम आपको Bhagwan Shiv Ke Kitne Avatar Hai की जानकारी दे रहे हैं।
भगवान विष्णु के अवतार कितने हैं ?
भगवान शिव जी के कितने अवतार हैं ?
Incarnation Of Lord Vishnu: भगवान शिव जी के कुल 19 अवतार हैं। इनके सबसे प्रसिद्ध अवतार काल भैरव और वीरभद्र हैं जिन्होंने धर्म की रक्षा हेतु दुष्ट लोगों का संहार किया। आज भी यह धर्म की रक्षा कर रहे हैं। कालों के काल, महाकाल जैसे नामों से प्रसिद्ध भगवान भोलेनाथ की गिनती त्रिदेव में होती है। इन्हें तंत्र मंत्र का अधिष्ठात्री देवता कहा जाता है। भगवान भोलेनाथ जी के द्वारा समय-समय पर कई अवतार लिए गए हैं जिनमें से कुछ अवतार दुष्ट असुरों का संहार करने के लिए तो कुछ अवतार देवताओं का अभिमान तोड़ने के लिए लिए गए हैं।
भगवान शिव जी के सभी अवतारों के नाम | Lord Shiva Avatar Names in Hindi (List)
- वीरभद्र अवतार |
- पिप्पलाद अवतार |
- नंदी अवतार |
- भैरव अवतार |
- अश्वत्थामा अवतार |
- शरभावतार |
- ग्रह पति अवतार |
- ऋषि दुर्वासा अवतार |
- हनुमान |
- वृषभ अवतार |
- यतिनाथ अवतार |
- कृष्णदर्शन अवतार |
- अवधूत अवतार |
- भिक्षुवर्य अवतार |
- सुरेश्वर अवतार |
- किरात अवतार |
- ब्रह्मचारी अवतार |
- सुनटनर्तक अवतार |
- यक्ष अवतार |
भगवान शिव जी के सभी अवतारों के नाम और उनकी जानकारी
नीचे भगवान भोलेनाथ जी के द्वारा लिए गए सभी अवतारों के नाम और उनकी जानकारी प्रस्तुत की गई है।
1: वीरभद्र अवतार
भगवान भोलेनाथ को यज्ञ में ना बुलाने की वजह से जब सती माता ने प्रजापति दक्ष के द्वारा आयोजित यज्ञ कुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी तो भगवान भोलेनाथ अत्यधिक क्रोधित हुए और उन्होंने वीरभद्र अवतार को प्रकट किया।
इस अवतार को प्रकट करने के लिए भगवान भोलेनाथ ने अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे पर्वत पर पटक दिया और इसी जटा से वीरभद्र नाम का एक अत्यंत बलशाली और पराक्रमी अवतार पैदा हुआ। भगवान भोलेनाथ के आदेश पर वीरभद्र ने प्रजापति दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और तलवार से प्रजापति दक्ष का सिर काट कर उसे मृत्युदंड दिया।
इसके पश्चात भगवान भोलेनाथ ने प्रजापति दक्ष को बकरे का सर दीया और दक्ष फिर से जीवित हुए। वहीं देवी सती के शरीर को लेकर के भगवान भोलेनाथ यहां वहां घूमने लगे और जहां जहां देवी के शरीर के अलग-अलग अंग गिरे वहां वहां शक्तिपीठ बन गए। इस प्रकार देश में 52 शक्ति पीठ हुए।
2: पिप्पलाद अवतार
भोलेनाथ के दूसरे अवतार पिप्पलाद हैं। इन्होंने एक बार जब देवताओं से पूछा कि ऐसी क्या वजह थी कि मेरे पिताजी दधीचि मुझे जन्म से पहले ही छोड़कर मृत्यु लोग चले गए तो देवताओं ने बताया कि इसके पीछे शनि ग्रह की दृष्टि जिम्मेदार है। इस पर पिप्पलाद काफी क्रोधित हुए और उन्होंने शनि को नछत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया।
इसके पश्चात देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर माफ कर दिया कि शनि किसी भी व्यक्ति को उसके पैदा होने से लेकर के 16 साल की उम्र तक कभी भी कष्ट नहीं देगा और तभी से पिप्पलाद का ध्यान करने से ही शनि ग्रह की पीड़ा समाप्त हो जाती है।
3: नंदी अवतार
शिलाद नाम के एक ऋषि का वंश समाप्त होने पर उनके पूर्वजों ने उनसे संतान पैदा करने के लिए कहा। इस पर शिलाद ने मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शंकर की तपस्या प्रारंभ की और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर के शिलाद ऋषि को वरदान दिया।
और एक दिन खेत की जुताई करते समय उन्हें एक बालक जमीन से प्राप्त हुआ जिसका नाम उन्होंने नंदी रखा और भगवान भोलेनाथ के द्वारा नंदी को अपना गण अध्यक्ष बनाया गया।
नंदी की शादी मरुतो की पुत्री सुयशा के साथ हुई। आज हर भोलेनाथ के मंदिर के सामने ही नंदी के तौर पर बैल की आकृति होती है।
4: भैरव अवतार
भैरव अवतार भी भगवान भोलेनाथ का ही है। एक बार ब्रह्मा भगवान और विष्णु भगवान आपस में एक दूसरे को श्रेष्ठ बता रहे थे तभी वहां से एक पुरुष की आकृति दिखाई दी। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि चंद्रशेखर तुम मेरी शरण में चले जाओ।
यह बातें सुनकर के भगवान भोलेनाथ अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने उस पुरुष आकृति से कहा कि काल की तरह शोभित होने की वजह से आप साक्षात्कार कालराज हैं और भीषण होने की वजह से आप भैरव हैं।
इस प्रकार से भगवान भोलेनाथ से प्राप्त वरदान का इस्तेमाल करते हुए कालभैरव ने अपनी उंगली के नाखून के द्वारा ब्रह्मा भगवान के 5वे सिर को उनके शरीर से अलग कर दिया और इस हत्या से काल भैरव बाबा को ब्रह्म हत्या का पाप लगा। यह पाप काशी में जाकर के खत्म हुआ।
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5: अश्वत्थामा
भगवान भोलेनाथ के पांचवे अवतार को अश्वत्थामा का नाम दिया गया था। यह भगवान भोलेनाथ के अंशावतार थे। इनकी उत्पत्ति गुरु द्रोणाचार्य से हुई थी।
द्रोणाचार्य के द्वारा भगवान भोलेनाथ को पुत्र के तौर पर पाने के लिए काफी कठिन तपस्या की गई थी और भगवान भोलेनाथ ने उन्हें प्रसन्न होकर के यह वरदान दिया कि वह उनके पुत्र के तौर पर पैदा होंगे। और समय आने पर अश्वत्थामा नाम का पुत्र गुरु द्रोणाचार्य को प्राप्त हुआ। कहते हैं कि वर्तमान के समय में भी अश्वत्थामा अजर अमर है और वह धरती पर ही विचरण कर रहे हैं।
6: शरभावतार
भगवान शिव के द्वारा जो छठा अवतार लिया गया था उसे शरभावतार कहा गया। इस अवतार में भगवान भोलेनाथ का आधा स्वरूप हिरण और आधा स्वरूप शरभ पक्षी था।
जब हिरण्यकशिपु राक्षस का वध करने के पश्चात भी नरसिंह देवता का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवताओं के आव्हान पर नरसिंह देवता का क्रोध शांत करने के लिए भगवान भोलेनाथ ने इस अवतार को ग्रहण किया था और इसी अवतार में वह नरसिंह भगवान के पास पहुंचे और उनकी स्तुति की परंतु फिर भी नरसिंह भगवान शांत नहीं हुए।
इसके बाद भगवान के इस अवतार ने नरसिंह भगवान को अपने पूछ मे लपेट लिया और उसे लेकर के कहीं चले गए। तब जाकर नरसिंह भगवान का क्रोध शांत हुआ।
7: गृहपति अवतार
ग्रह पति अवतार भगवान शंकर जी का सातवां अवतार है। विश्वानर नाम के एक ऋषि और उनकी पत्नी शुचिष्मती किसी इलाके में रहते थे। शुचिष्मती की संतान नहीं थी तो उन्होंने अपने पति से भोलेनाथ की तरह संतान प्राप्त करने की इच्छा जाहिर की।
इस पर ऋषि ने बनारस जाकर के भोलेनाथ के वीरेश लिंग की साधना की और एक दिन साधना के दरमियान वीरेश लिंग के बीच में एक बालक दिखाई दिया।
तो ऋषि ने उसकी पूजा की और पूजा से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने ऋषि की पत्नी के पेट से अवतार लेने का वरदान दिया और बाद में शुचिष्मती के गर्भ से उन्होंने ग्रह पति अवतार के तौर पर जन्म लिया।
8: ऋषि दुर्वासा
पुत्र प्राप्ति के लिए सती अनुसूया के पति ऋषि अत्री ने एक पर्वत पर कठोर तपस्या की और उनकी तपस्या से खुश होकर के ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों उनके आश्रम पर पहुंचे और तीनों ने कहा कि हमारे अंग से ही तुम्हारे तीन पुत्र पैदा होंगे।
जो हर जगह विख्यात होंगे और तुम्हारा सम्मान करेंगे और समय गुजरने के पश्चात ब्रह्मा जी के अंश से चंद्रमा, विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय और भोलेनाथ के अंश से मुनिवर दुर्वासा पैदा हुए। इस प्रकार भोलेनाथ जी का आठवां अवतार ऋषि दुर्वासा हुए जो अपने आप में एक प्रकांड ज्ञानी और सिद्धि धारक थे।
9: हनुमान
देवता और दानवो के बीच जब विष्णु जी के मोहनी रूप के द्वारा अमृत बांटा जा रहा था तो भगवान भोलेनाथ मोहिनी रूप को देख करके अपने आप को रोक ना सके और उनका वीर्य निकल गया और सप्त ऋषियों ने भोलेनाथ जी के वीर्य को कुछ पत्ते पर इकट्ठा कर लिया।
और समय आने पर इसी वीर्य के द्वारा वानर राज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में स्थापित किया गया और उसी से महा पराक्रमी, महा बलशाली और प्रबल राम भक्त भगवान श्री हनुमान जी का जन्म हुआ जिन्हें 1000 से भी अधिक हाथियों का बल प्राप्त था और इन्हें भूत-प्रेत का काल माना जाता है।
10: वृषभ अवतार
धर्म ग्रंथों के अनुसार इस अवतार के अंतर्गत भगवान भोलेनाथ के द्वारा विष्णु जी के पुत्रों का संहार किया गया था। जब भोलेनाथ विष्णु दैत्यो को खत्म करने के लिए पाताल लोग गए थे तो वहां पर उन्हें चंद्रमुखी स्त्रियां दिखाई थी। जिनसे उत्पन्न संताने धरती पर काफी उपद्रव मचाती थी और इसीलिए भोलेनाथ जी ने वृषभ अवतार लेकर के उन विष्णु दैत्यों का खात्मा किया।
11: यतिनाथ अवतार
अर्बुदाचल नाम के पर्वत पर भोलेनाथ के भक्त आहुक-आहुका भील दंपत्ति निवास करते थे। एक बार भगवान भोलेनाथ यति नाथ का भेष बनाकर उनके घर पर गए और रात रुकने की इच्छा जाहिर की।
इस पर आहूका ने अपने पति को गृहस्थ की मर्यादा का स्मरण करवाते हुए खुद धनुष बाण लेकर के बाहर रात बिताने और यति को घर में विश्राम करने देने की सलाह दी।
इस पर आहुक धनुष बाण लेकर के बाहर चले गए और जब सुबह हुई तो यति और आहुका ने देखा कि जंगली जानवरों ने आहुका को खत्म कर दिया है। इससे यति काफी दुखी हुए। तब उन्होंने आहूका को शांत करते हुए कहा कि अगले जन्म में उनका मिलन फिर से उनके पति से होगा।
12: कृष्णदर्शन अवतार
जब नभग के द्वारा यज्ञ भूमि में पहुंचकर वैश्य देव सूक्त के स्पष्ट उच्चारण के द्वारा यज्ञ संपन्न कराया तो उसी समय शिवजी कृष्ण दर्शन अवतार रूप में प्रकट हुए और बोले कि यज्ञ के अवशिष्ट धन पर तो उनका अधिकार है।
और विवाद होने पर श्री कृष्ण दर्शन रूप धारी भोलेनाथ जी ने उसे अपने पिता से ही निर्णय कराने को कहा और नभग ने अपने पिता से पूछा तो पिता ने कहा कि वह पुरुष शंकर भगवान है। यज्ञ में अवशिष्ट वस्तु भोलेनाथ की ही है और इस प्रकार नभग ने शिवजी की स्तुति की।
13: अवधूत अवतार
इंद्र के अहंकार को खत्म करने के लिए भोलेनाथ जी ने अवधूत अवतार लिया था। कहानी के अनुसार बृहस्पति और दूसरे देवता इंद्र के साथ भोलेनाथ जी के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पर गए थे और भोलेनाथ जी के द्वारा रास्ते में ही अवधूत का रूप धारण करके इंद्र का रास्ता उनकी परीक्षा लेने के लिए रोका गया।
इंद्र ने बार-बार अवधूत से उनका परिचय पूछा परंतु उन्होंने कुछ नहीं बताया। इस पर क्रोध में आकर के इंद्र ने जैसे ही अवधूत पर अटैक करने का प्रयास किया वैसे ही उनका हाथ एक ही जगह पर टीका रह गया।
यह सब घटनाक्रम देख कर के बृहस्पति जी ने भगवान भोलेनाथ को पहचान लिया और अवधूत की बहू विधि स्तुति की। इससे प्रसन्न होकर के भोलेनाथ जी के द्वारा इंद्र को क्षमादान दिया गया।।
14: भिक्षुवर्य अवतार
विदर्भ के राजा सत्य रथ के द्वारा कई दुश्मनों का खात्मा किया गया और उनकी पत्नी ने दुश्मनों से छिपकर अपने प्राणों की रक्षा की और एक पुत्र पैदा किया। एक बार रानी जब पानी पीने के लिए सरोवर गई तो घड़ियाल ने उन्हें निगल लिया और उनका पुत्र भूख प्यास से तड़पने लगा।
इस पर शिवजी की प्रेरणा से एक भिखारिन वहां पर पहुंची और तब शिवजी ने एक भिखारी का रूप धारण करके उस भिखारिन को बालक के बारे में बताया और भिखारी से कहा कि वह बालक का पालन पोषण करें और फिर भिखारिन को भोलेनाथ जी ने अपना असली रूप दिखाया।
इसके बाद भिखारीन ने बालक का पालन पोषण किया और बालक ने बड़े होकर के अपने खोए हुए राज पाठ को फिर से हासिल किया।
15: सुरेश्वर अवतार
इस अवतार में भगवान भोलेनाथ एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न हुए थे और भोलेनाथ भगवान के द्वारा उस बालक को अपनी परम भक्ति का और अहम पद का वरदान दिया गया था।
16: किरात अवतार
महाभारत काल के दरमियान अर्जुन के द्वारा शंकर भगवान को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की जा रही थी और तभी दुर्योधन के द्वारा एक राक्षस को अर्जुन को खत्म करने के लिए भेजा गया जो वहां पर सूअर का रूप धारण करके पहुंचा।
अर्जुन के द्वारा सूअर को मारने के लिए बाण से प्रहार किया गया और उसी दरमियान भोलेनाथ जी ने भी किरात अवतार धारण करके उसी सूअर पर बाण चलाया। हालांकि शिवजी की माया अर्जुन पहचान नहीं सके और अर्जुन को लगा कि उनके ही बाढ़ से सूअर की मृत्यु हुई।
इस पर अर्जुन और किरात वेषधारी भोलेनाथ जी के बीच घमासान युद्ध चालू हुआ। अर्जुन की बहादुरी को देख कर के भगवान भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपना असली रूप अर्जुन को दिखाया और युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया।
17: ब्रह्मचारी अवतार
दक्ष के यज्ञ में जब अपना शरीर खत्म करने के पश्चात दोबारा से सती का जन्म हिमालय के घर में हुआ तो उन्होंने भगवान भोलेनाथ को अपने पति के तौर पर पाने के लिए काफी कठोर तपस्या की। इसी दरमियान पार्वती की परीक्षा लेने के लिए भगवान भोलेनाथ ने एक ब्रह्मचारी का वेश धारण किया और उनके पास पहुंचे।
पार्वती जी के द्वारा ब्रह्मचारी की अच्छी आवभगत की गई और जब ब्रह्मचारी के द्वारा पार्वती से यह पूछा गया कि वह तप क्यों कर रही है तो पार्वती ने अपना उद्देश्य बताया।
इस पर ब्रह्मचारी ने शिवजी की निंदा करना प्रारंभ कर दिया और उन्हें कापालिक तथा श्मशान वासी कहा। यह सुनकर के पार्वती अत्याधिक क्रोधित हुई। हालांकि उनका क्रोध बढ़ने से पहले ही भगवान भोलेनाथ अपने असली रूप में आ गए जिसे देख कर के पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुई।
18: सुनटनर्तक अवतार
पार्वती के अभिभावक हिमाचल से पार्वती से विवाह करने के लिए भोलेनाथ जी के द्वारा सुनटनर्तक का अवतार धारण किया गया और हाथ में डमरू लेकर के वह हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे।
जिससे वहां पर मौजूद सभी लोग खुश हो गए और जब हिमाचल के द्वारा नटराज से भिक्षा मांगने के लिए कहा गया तो उन्होंने पार्वती से विवाह करने की इच्छा जताई।
इस पर हिमाचल राज काफी क्रोधित हुए। हालांकि थोड़े समय के पश्चात ही शिव जी अपना असली रूप पार्वती को दिखा कर के वहां से चले गए। इसके पश्चात हिमाचल और मैना को ज्ञान हुआ और उन्होंने शिव जी के साथ पार्वती का विवाह करने का निश्चय किया।
19: यक्ष अवतार
देवताओं के अभिमान को तोड़ने के लिए भोलेनाथ जी के द्वारा यक्ष अवतार लिया गया था क्योंकि जब समुद्र मंथन हो रहा था तब उसमें से निकले हुए जहर को भोलेनाथ जी ने अपने गले में ग्रहण करके रोक लिया था और उसके पश्चात जो अमृत कलश निकला।
उसमें से अमृत पान करके सभी देवता तो अमर हो गए और उन्हें अभिमान हो गया कि वह सबसे शक्तिशाली है और इसी अभिमान को खत्म करने के लिए शंकर भगवान के द्वारा यक्ष का रूप धारण किया गया।
और देवताओं के आगे एक तिनका रखा गया और उसे जलाने के लिए, काटने के लिए, उड़ाने के लिए या फिर डुबोने के लिए कहा गया।
हालांकि कोई भी देवता ऐसा नहीं कर सका। तब एक आकाशवाणी हुई जिसमें यह कहा गया कि भगवान भोलेनाथ ही सबसे बलशाली हैं और तब सभी देवताओं ने भोलेनाथ जी से क्षमा याचना की।
भगवान शिव जी कौन है ?
Who is Lord Shiv in Hindi: भगवान शिव जी को महाकाल, भोले नाथ, भोले भंडारी जैसे नामों से भी जानते हैं। यह हिंदू धर्म के प्रमुख देवता में से एक है। इनकी गिनती त्रिदेवो में होती है। भोलेनाथ की पत्नी माता पार्वती है। इनके पुत्रों के नाम कार्तिकेय और गणेश जी हैं। यह सभी देवताओं की श्रेणी में है।
इनके पुत्र गणेश भगवान को प्रथम पूजा का अधिकार देवताओं के द्वारा दिया गया है। हिंदू धर्म के सबसे शक्तिशाली और बलशाली देवता में भोलेनाथ जी की गिनती होती है। यह कैलाश पर्वत पर अपनी पत्नी और अपनी संतानों के साथ निवास करते हैं।
इनके एक हाथ में त्रिशूल है तो एक हाथ में डमरू है और इनके गले में हमेशा सांप लिपटा हुआ रहता है, वहीं इनकी जटा में गंगा माता का स्थान है। यह साधु भेष में रहते हैं और इनके चेहरे पर एक अलग ही तेज होता है।
भगवान शिव जी के द्वारा कई अवतार लिए गए हैं जिनके अलग अलग नाम है। इनके सबसे प्रसिद्ध अवतार काल भैरव और वीरभद्र हैं। वीरभद्र के द्वारा ही प्रजापति दक्ष का वध किया गया था।
क्योंकि उनके द्वारा शिवजी को यज्ञ में ना बुलाने की वजह से सती माता ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी और सती माता की मृत्यु की खबर सुनने के पश्चात शंकर जी के द्वारा वीरभद्र को उत्पन्न किया गया था।
FAQ‘s
भगवान शिव के 19 अवतार कौन कौन से हैं ?
शिव जी के 19 अवतार की जानकारी आर्टिकल में बताई गई है।
भगवान शिव के 11 रुद्र कौन कौन से हैं ?
पाली,पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शम्भू, चण्ड तथा भव।
शिव जी के पहले अवतार कौन थे ?
वीरभद्र
भगवान शिव की मृत्यु कैसे हुई ?
भगवान शिव अजर अमर है।