भविष्य की अनिश्चितताओं को देखते हुए, क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी संपत्ति आपके बाद किसके पास जाएगी? कई लोग इस बारे में सोचते तो हैं, लेकिन सही समय पर जरूरी कदम नहीं उठाते। नतीजा यह होता है कि उनके जाने के बाद परिवार में विवाद खड़े हो जाते हैं। ऐसी स्थिति से बचने के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी उपाय मौजूद है, जिसके बारे में हर संपत्ति मालिक को जानकारी होनी चाहिए।
अब सवाल यह उठता है कि वसीयत क्या होती है? और यह क्यों जरूरी है? यह एक कानूनी दस्तावेज होता है, जिसमें व्यक्ति अपनी संपत्ति के उत्तराधिकारी तय करता है। इसकी मदद से यह सुनिश्चित किया जाता है कि मृत्यु के बाद संपत्ति उसी व्यक्ति को मिले, जिसे मालिक चाहता था। अक्सर लोग यह मानते हैं कि वसीयत बनाने की जरूरत सिर्फ अमीरों को होती है, लेकिन सच तो यह है कि हर व्यक्ति जिसके पास संपत्ति है, उसे इसे बनाना चाहिए।
अगर आप भी सोच रहे हैं कि वसीयत क्या होती है? और इसे कैसे बनाया जाता है, तो यह मार्गदर्शिका आपके लिए मददगार साबित होगी। वसीयत को सही तरीके से तैयार करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियमों और कानूनी प्रक्रियाओं को समझना जरूरी है। इसमें यह भी जानना आवश्यक है कि कौन वसीयत बना सकता है, किन संपत्तियों की वसीयत की जा सकती है, और इसके कानूनी लाभ क्या हैं।
वसीयत क्या होती है? (What is a Will?)
वसीयत एक कानूनी दस्तावेज है, जिसमें कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति के वितरण के बारे में निर्देश देता है ताकि उसकी मृत्यु के बाद संपत्ति उन्हीं लोगों को मिले, जिन्हें वह देना चाहता है। यह दस्तावेज अनिवार्य नहीं है, लेकिन इसे बनाने से उत्तराधिकार को लेकर होने वाले विवादों से बचा जा सकता है।
वसीयत लिखित होनी चाहिए और इसे बिना किसी दबाव के स्वेच्छा से बनाया जाना चाहिए। इसमें संपत्ति का पूरा विवरण, उत्तराधिकारी के नाम और वितरण की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए। आमतौर पर इसे दो गवाहों की उपस्थिति में बनाया जाता है और उनके हस्ताक्षर भी आवश्यक होते हैं।
हालांकि, वसीयत का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है, लेकिन कानूनी दृष्टि से इसे मजबूत बनाने के लिए इसे पंजीकृत कराना उचित रहता है। कोई भी 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र का व्यक्ति, जो मानसिक रूप से स्वस्थ है, अपनी संपत्ति की वसीयत बना सकता है।
यदि कोई व्यक्ति बिना वसीयत के निधन हो जाता है, तो उसकी संपत्ति का वितरण उत्तराधिकार कानूनों के अनुसार होता है, जिससे कई बार परिवार में विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। इसलिए, अपनी संपत्ति का सही नियोजन करने और अपनों को सुरक्षित भविष्य देने के लिए वसीयत बनाना एक समझदारी भरा कदम होता है|
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वसीयत बनाने का उद्देश्य (Purpose of Making a Will)
हर व्यक्ति चाहता है कि उसकी संपत्ति का सही तरीके से उपयोग हो और उसके जाने के बाद परिवार में किसी तरह का विवाद न हो। इसीलिए वसीयत बनाना एक समझदारी भरा निर्णय होता है, जिससे भविष्य में कानूनी और पारिवारिक समस्याओं से बचा जा सकता है। वसीयत बनाने के कुछ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं।
- संपत्ति के इच्छानुसार वितरण की सुविधा मिलती है
- उत्तराधिकारियों के बीच संभावित विवादों से बचाव होता है
- कानूनी प्रक्रिया को आसान और स्पष्ट बनाया जा सकता है
- किसी विशेष व्यक्ति या संस्था को संपत्ति देने का अधिकार मिलता है
- नाबालिग या विकलांग उत्तराधिकारियों के लिए विशेष प्रावधान किया जा सकता है
- बिना वसीयत के संपत्ति का बंटवारा उत्तराधिकार कानून के अनुसार होता है, जिससे मनचाहा वितरण नहीं हो पाता
- परिवार की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है
- वसीयत में टैक्स से जुड़े प्रावधानों को ध्यान में रखकर बचत की योजना बनाई जा सकती है
- संपत्ति के प्रबंधन और देखभाल के लिए एक ट्रस्टी या संरक्षक नियुक्त किया जा सकता है
- अपनी अंतिम इच्छाओं को कानूनी रूप से दर्ज कराने का मौका मिलता है
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वसीयत कितने प्रकार की होती है? (Types of Wills in India)
भारत में वसीयत के कई प्रकार होते हैं, जो व्यक्ति की जरूरतों और कानूनी स्थिति के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। प्रत्येक प्रकार की वसीयत का अलग कानूनी महत्व होता है।
पंजीकृत वसीयत– यह उप-पंजीयक कार्यालय में रजिस्टर्ड होती है, जिससे इसकी कानूनी वैधता अधिक होती है और इसे चुनौती देना मुश्किल होता है।
अपंजीकृत वसीयत– इसे सिर्फ लिखित रूप में बनाया जाता है और गवाहों के हस्ताक्षर होते हैं, लेकिन इसे रजिस्टर नहीं कराया जाता।
होलोग्राफिक वसीयत– यह पूरी तरह से संपत्ति मालिक के हाथों से लिखी गई वसीयत होती है, जिसमें गवाहों की जरूरत नहीं होती, लेकिन कानूनी रूप से प्रमाणित करना आवश्यक हो सकता है।
सामान्य वसीयत– इसमें संपत्ति का बंटवारा स्पष्ट रूप से लिखा होता है और इसे किसी भी समय बदला जा सकता है।
संयुक्त वसीयत– यह दो लोगों द्वारा मिलकर बनाई जाती है, जिसमें आमतौर पर पति-पत्नी अपनी संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर निर्देश देते हैं।
सशर्त वसीयत– इसमें कुछ शर्तें होती हैं, जो पूरी होने के बाद ही संपत्ति उत्तराधिकारी को मिलती है।
विशेष वसीयत– यह विशेष परिस्थितियों के तहत बनाई जाती है, जैसे सैनिकों द्वारा युद्धकाल में बनाई गई वसीयत, जिसे विशेष नियमों के तहत मान्यता मिलती है|
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वसीयत और उत्तराधिकार में क्या अंतर है? (Difference Between Will and Inheritance)
वसीयत (Will) | उत्तराधिकार (Inheritance) |
वसीयत एक कानूनी दस्तावेज है, जिसमें व्यक्ति अपनी संपत्ति के वितरण का निर्देश देता है, ताकि उसकी मृत्यु के बाद संपत्ति उन्हीं लोगों को मिले, जिन्हें वह देना चाहता है। | उत्तराधिकार वह कानूनी प्रक्रिया है, जिसके तहत किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति कानून द्वारा निर्धारित उत्तराधिकारियों में बांटी जाती है, यदि वसीयत न हो। |
वसीयत व्यक्ति की मृत्यु के बाद लागू होती है, बशर्ते उसने जीवित रहते हुए यह दस्तावेज बनाया हो। | उत्तराधिकार उस स्थिति में लागू होता है जब व्यक्ति बिना वसीयत बनाए मृत्यु को प्राप्त होता है, जिससे उसकी संपत्ति का बंटवारा कानून के अनुसार होता है। |
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के अंतर्गत वसीयत बनाई और मान्य होती है। | हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956, मुस्लिम पर्सनल लॉ और अन्य संबंधित कानूनों के तहत संपत्ति का बंटवारा किया जाता है। |
वसीयत बनाने वाला व्यक्ति अपनी संपत्ति का इच्छानुसार बंटवारा कर सकता है और किसी को भी संपत्ति का उत्तराधिकारी बना सकता है। | उत्तराधिकार में संपत्ति का वितरण कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच सरकार द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार होता है। |
वसीयत के लिए दो गवाहों की जरूरत होती है, ताकि इसकी वैधता प्रमाणित की जा सके। | उत्तराधिकार में कोई गवाहों की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह स्वचालित रूप से कानून के अनुसार लागू होता है। |
वसीयत का रजिस्ट्रेशन आवश्यक नहीं होता, लेकिन इसे कानूनी रूप से मजबूत बनाने के लिए रजिस्टर करवाना उचित होता है। | उत्तराधिकार में किसी प्रकार के दस्तावेज के रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं होती, यह कानून द्वारा स्वतः निर्धारित होता है। |
व्यक्ति अपनी जीवनकाल में वसीयत को जितनी बार चाहे बदल सकता है और नई वसीयत पुरानी को रद्द कर सकती है। | उत्तराधिकार में संपत्ति का बंटवारा कानून द्वारा निर्धारित होता है, और इसमें व्यक्तिगत इच्छा के अनुसार बदलाव संभव नहीं होता। |
वसीयत के अनुसार संपत्ति उन व्यक्तियों को दी जाती है, जिन्हें वसीयतकर्ता ने अपनी इच्छा से उत्तराधिकारी बनाया है। | उत्तराधिकार में संपत्ति का वितरण पारिवारिक रिश्तों के आधार पर तय होता है, जिसमें पति/पत्नी, संतान, माता-पिता आदि मुख्य उत्तराधिकारी होते हैं। |
यदि वसीयत स्पष्ट और सही तरीके से बनाई गई हो, तो संपत्ति के वितरण में विवाद की संभावना कम होती है। हालाँकि, विवाद की स्थिति में इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है। | उत्तराधिकार में संपत्ति के हिस्से को लेकर पारिवारिक सदस्यों के बीच विवाद की संभावना अधिक होती है, क्योंकि इसमें सभी कानूनी उत्तराधिकारियों का दावा होता है। |
वसीयत लिखने के लिए कौन योग्य होता है? (Who Can Write a Will?)
वसीयत लिखने के लिए व्यक्ति को कानूनी रूप से सक्षम होना चाहिए। आमतौर पर, 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र का कोई भी मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अपनी संपत्ति के बंटवारे के लिए वसीयत लिख सकता है। वसीयत स्वेच्छा से बनाई जानी चाहिए, बिना किसी दबाव या धोखाधड़ी के।
इसके अलावा, वसीयत लिखित होनी चाहिए और गवाहों द्वारा सत्यापित होनी चाहिए ताकि उसकी वैधता बनी रहे। कुछ देशों में, रजिस्टर्ड वसीयत को अधिक विश्वसनीय माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति वसीयत नहीं बनाता, तो उसकी संपत्ति उत्तराधिकार कानूनों के अनुसार बांटी जाती है।
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वसीयत लिखने की कानूनी प्रक्रिया (Legal Process for Writing a Will)
वसीयत (Will) लिखने की एक कानूनी प्रक्रिया होती है, जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि संपत्ति का बंटवारा व्यक्ति की इच्छा के अनुसार हो। भारत में वसीयत भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (Indian Succession Act, 1925) के तहत आती है।
वसीयत लिखने की पात्रता– 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र का व्यक्ति वसीयत लिख सकता है। मानसिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है। वसीयत स्वतंत्र इच्छा से लिखी जानी चाहिए, किसी दबाव या धोखाधड़ी से नहीं।
वसीयत का प्रारूप– वसीयत लिखित रूप में होनी चाहिए (मौखिक वसीयत कानूनी रूप से मान्य नहीं होती)। इसमें वसीयतकर्ता (Will Maker) का नाम, पता और तारीख होनी चाहिए। संपत्ति के सही विवरण और उत्तराधिकारियों के नाम स्पष्ट रूप से लिखें, संपत्ति के वितरण के नियम और शर्तें स्पष्ट होनी चाहिए।यदि कोई गार्जियन या एग्जीक्यूटर (Will Executor) नियुक्त कर रहे हैं, तो उसका नाम और विवरण दें।
गवाहों की जरूरत– वसीयत पर कम से कम दो स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर आवश्यक हैं। गवाहों को वसीयत पढ़कर यह सत्यापित करना होगा कि इसे वसीयतकर्ता ने अपनी इच्छा से बनाया है। गवाह उत्तराधिकारी नहीं हो सकते।
वसीयत का पंजीकरण (Registration of Will)- वसीयत को रजिस्ट्रार ऑफिस में पंजीकृत (Registered) कराया जा सकता है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। पंजीकरण से वसीयत को कानूनी सुरक्षा मिलती है और विवाद की संभावना कम हो जाती है। रजिस्ट्रेशन के लिए वसीयतकर्ता और गवाहों को रजिस्ट्रार के सामने उपस्थित होना पड़ता है।
वसीयत में संशोधन और रद्दीकर– वसीयतकर्ता जीवनकाल में वसीयत में बदलाव कर सकता है या नई वसीयत बनाकर पुरानी को रद्द कर सकता है। संशोधन करने के लिए कोडिसिल (Codicil) जोड़ा जा सकता है।
वसीयत के अमल में लाने की प्रक्रिया– वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद, वसीयत को कोर्ट में प्रस्तुत किया जाता है। यदि कोई विवाद नहीं होता, तो प्रॉबेट (Probate) प्रक्रिया के तहत वसीयत लागू की जाती है।यदि विवाद होता है, तो अदालत मामले की जांच कर अंतिम निर्णय देती है।
वसीयत में क्या–क्या शामिल किया जा सकता है? (What Can Be Included in a Will?)
वसीयत में वह सभी संपत्तियां और अधिकार शामिल किए जा सकते हैं, जिनका व्यक्ति कानूनी स्वामी है। इसमें चल और अचल संपत्ति जैसे घर, जमीन, बैंक बैलेंस, आभूषण, शेयर, बीमा पॉलिसी, व्यापार, गाड़ी आदि शामिल हो सकते हैं। वसीयत में उत्तराधिकारी (heirs) के नाम स्पष्ट रूप से लिखे जाने चाहिए और यह भी बताया जा सकता है कि किसे क्या संपत्ति मिलेगी। यदि वसीयतकर्ता किसी गार्जियन (अभिभावक) या एग्जीक्यूटर (Will Executor) को नियुक्त करना चाहता है, तो उसका नाम भी जोड़ा जा सकता है। इसके अलावा, दान या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए भी संपत्ति आवंटित की जा सकती है।
वसीयत को मान्य बनाने के लिए जरूरी शर्तें (Conditions for a Valid Will)
वसीयत को कानूनी रूप से मान्य बनाने के लिए कुछ आवश्यक शर्तों का पालन करना जरूरी है। सबसे पहले, वसीयतकर्ता की आयु 18 वर्ष या उससे अधिक होनी चाहिए और वह मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए। वसीयत स्वेच्छा से बनाई जानी चाहिए, बिना किसी दबाव, धोखाधड़ी या जबरदस्ती के। इसे लिखित रूप में तैयार किया जाना चाहिए और इसमें संपत्ति का स्पष्ट विवरण, उत्तराधिकारियों के नाम और संपत्ति के वितरण का उल्लेख होना चाहिए। वसीयत पर कम से कम दो स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर होने चाहिए, जो यह प्रमाणित करें कि वसीयतकर्ता ने अपनी इच्छा से इसे बनाया है।
वसीयत लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें (Important Points to Consider While Writing a Will)
वसीयत लिखते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना जरूरी है ताकि बाद में कोई कानूनी विवाद न हो। वसीयत स्पष्ट और संक्षिप्त होनी चाहिए, जिसमें संपत्ति, उत्तराधिकारियों और वितरण का सही विवरण दिया गया हो। वसीयत को गवाहों की उपस्थिति में लिखा और हस्ताक्षरित किया जाना चाहिए। वसीयतकर्ता को अपनी संपत्ति का पूरा अधिकार होना चाहिए और उसे स्वतंत्र रूप से निर्णय लेना चाहिए। जरूरत पड़ने पर किसी कानूनी सलाहकार की मदद ली जा सकती है। वसीयत का पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं है, लेकिन इससे इसकी प्रमाणिकता बढ़ जाती है और बाद में विवाद की संभावना कम होती है।
वसीयत को रजिस्टर करवाना क्यों जरूरी है? (Why is It Important to Register a Will?)
वसीयत को रजिस्टर करवाना जरूरी नहीं है, लेकिन यह कई कानूनी लाभ प्रदान करता है। रजिस्टर्ड वसीयत अधिक विश्वसनीय मानी जाती है और इसे आसानी से चुनौती नहीं दी जा सकती। पंजीकरण से यह सुनिश्चित होता है कि वसीयत सुरक्षित रूप से सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हो, जिससे इसे गुम होने, नष्ट होने या छेड़छाड़ की संभावना कम हो जाती है। रजिस्टर करने के दौरान वसीयतकर्ता और गवाहों की उपस्थिति में रजिस्टार इसकी पुष्टि करता है, जिससे वसीयत की वैधता मजबूत होती है। पंजीकृत वसीयत उत्तराधिकारियों के लिए संपत्ति के दावों को कानूनी रूप से स्थापित करने में मददगार होती है।
क्या वसीयत को बदला या रद्द किया जा सकता है? (Can a Will Be Modified or Revoked?)
हाँ, वसीयत को बदला या रद्द किया जा सकता है। वसीयतकर्ता अपने जीवनकाल में कभी भी वसीयत में संशोधन कर सकता है या नई वसीयत बनाकर पुरानी को रद्द कर सकता है। यदि केवल कुछ बदलाव करने हों, तो कोडिसिल (Codicil) जोड़ा जा सकता है, जो वसीयत का आधिकारिक संशोधन होता है। यदि वसीयतकर्ता पुरानी वसीयत को पूरी तरह रद्द करना चाहता है, तो उसे नष्ट कर नई वसीयत बनानी चाहिए। नई वसीयत में स्पष्ट रूप से पुरानी वसीयत को अमान्य घोषित करना जरूरी है ताकि किसी तरह का कानूनी विवाद न हो।
बिना वसीयत के संपत्ति का वितरण कैसे होता है? (How is Property Distributed Without a Will?)
बिना वसीयत के संपत्ति का वितरण उत्तराधिकार कानून के अनुसार किया जाता है। भारत में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और मुस्लिम वसीयत कानून के तहत संपत्ति का बंटवारा किया जाता है। हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदायों में संपत्ति पहले क्लास-1 उत्तराधिकारियों (पति/पत्नी, संतान, माता-पिता) में बांटी जाती है। यदि ये मौजूद नहीं हैं, तो क्लास-2 उत्तराधिकारियों (भाई-बहन, चाचा-ताऊ आदि) को संपत्ति मिलती है। मुस्लिम कानून में संपत्ति का वितरण शरीयत के अनुसार होता है। बिना वसीयत के संपत्ति का दावा करने में कानूनी प्रक्रिया लंबी हो सकती है, जिससे परिवार में विवाद भी हो सकता है।
वसीयत विवाद और उसे हल करने के तरीके (Will Disputes and How to Resolve Them)
वसीयत विवाद तब उत्पन्न होते हैं जब उत्तराधिकारी या अन्य संबंधित व्यक्ति वसीयत की वैधता, संपत्ति के बंटवारे या गवाहों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं। ऐसे विवाद आमतौर पर जाली वसीयत, दबाव में बनाई गई वसीयत, गवाहों की अनुपस्थिति या अस्पष्ट संपत्ति विवरण के कारण होते हैं। इन विवादों को हल करने के लिए कानूनी माध्यम अपनाए जा सकते हैं, जैसे मध्यस्थता (mediation), आपसी सहमति, या अदालत में प्रॉबेट (probate) प्रक्रिया के माध्यम से समाधान निकालना। यदि आवश्यक हो, तो वकील की सहायता लेकर अदालत में वसीयत की वैधता साबित की जा सकती है, जिससे विवाद को सुलझाया जा सके।
वसीयत बनाने में वकील की भूमिका (Role of a Lawyer in Making a Will)
वसीयत बनाने में वकील की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वह वसीयत को कानूनी रूप से वैध और विवाद रहित बनाने में मदद करता है। वकील संपत्ति, उत्तराधिकारियों और कानूनी दायित्वों को ध्यान में रखते हुए वसीयत का मसौदा तैयार करता है। वह यह सुनिश्चित करता है कि वसीयत स्पष्ट हो, कानूनी मानदंडों का पालन करे और किसी दबाव या धोखाधड़ी के बिना बनाई गई हो। वकील गवाहों की व्यवस्था, वसीयत के पंजीकरण और जरूरत पड़ने पर कोडिसिल (संशोधन) जोड़ने में भी सहायता करता है। विवाद की स्थिति में वकील अदालत में वसीयत की वैधता को साबित करने में भी मदद करता है|
वसीयत से जुड़ी आम गलतफहमियां (Common Misconceptions About Wills)
वसीयत से जुड़ी कई आम गलतफहमियां हैं, जिनके कारण लोग इसे बनाने से बचते हैं। एक आम भ्रम यह है कि केवल अमीर लोगों को वसीयत की जरूरत होती है, जबकि यह हर व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है। कुछ लोग मानते हैं कि वसीयत बनाकर संपत्ति पर उनका अधिकार खत्म हो जाता है, जो गलत है क्योंकि वसीयत केवल मृत्यु के बाद प्रभावी होती है। यह भी एक गलतफहमी है कि मौखिक वसीयत मान्य होती है, जबकि कानूनी रूप से लिखित वसीयत अधिक सुरक्षित होती है। साथ ही, कई लोग सोचते हैं कि रजिस्टर्ड वसीयत को बदला नहीं जा सकता, जबकि इसे संशोधित किया जा सकता है।
वसीयत क्या होती है? से सम्बंधित सवाल/जवाब [FAQ,s]
वसीयत एक कानूनी दस्तावेज है, जिसमें जमीन के मालिक द्वारा मृत्यु के बाद संपत्ति के अधिकार को स्पष्ट किया जाता है। इसे स्टाम्प पेपर पर लिखकर, दो गवाहों की मौजूदगी में हस्ताक्षर करके और नोटरी या रजिस्ट्रार से प्रमाणित कराना सही होता है।
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के तहत कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति की वसीयत कर सकता है। वसीयत लिखित होनी चाहिए, स्पष्ट होनी चाहिए और बिना दबाव के बनाई जानी चाहिए।
पुश्तैनी जमीन (संयुक्त पारिवारिक संपत्ति) की वसीयत करना संभव नहीं है, क्योंकि यह सभी उत्तराधिकारियों का अधिकार होती है। केवल अपनी व्यक्तिगत संपत्ति की ही वसीयत की जा सकती है।
वसीयत को लागू करने के लिए उत्तराधिकारी को तहसील या नगर निगम में आवेदन देना पड़ता है। सत्यापन के बाद, जमीन के रिकॉर्ड में मालिक का नाम बदल दिया जाता है, जिसे दाखिल-खारिज कहते हैं।
वसीयत करने से संपत्ति को लेकर परिवार में विवाद नहीं होता, कानूनी प्रक्रिया आसान होती है और संपत्ति इच्छानुसार हस्तांतरित हो सकती है।