Ras Kise Kahate Hain – जब भी हम हिंदी भाषा के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं तो उसमें हिंदी व्याकरण का अहम योगदान होता है। जिससे भाषा के विभिन्न अंगों को शुद्धत्तम अर्थ में समझा जा सकता है।
जब भी हम किसी वाक्य की उत्पत्ति करते हैं या फिर किसी वाक्य की संरचना करते हैं तो रस का विशेष रूप से योगदान माना जाता है जो हिंदी व्याकरण में भी एक विभिन्न अंग है। अतः आज हम रस किसे कहते हैं | रस के प्रकार एवं परिभाषा उदाहरण सहित सीखेंगे जो निश्चित रूप से ही आपके लिए हितकर होने वाला है।
रस किसे कहते हैं ? (Ras Kise Kahate Hain Hindi Mein)
रस एक ऐसी अनुभुति होती है, जो हमें किसी भी अलौकिक आनंद की प्रेरणा देते हैं। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि यदि किसी काव्य या काव्यांश को पढ़ने के बाद आपके मन में एक अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है।
जो आपके मन को बहुत पसंद आती है तो इसे ही हम रस कहते हैं। सामान्य रूप से रस पढ़ने, सुनने या किसी अभिव्यक्ति के अंतर्गत हमें दिखाई देती है।
रस के विभिन्न अंग | Ras Ke Ango Ke Naam
मुख्य रूप से रस के चार अंग होते हैं जिनके बारे में हम विस्तार से चर्चा करेंगे |
- स्थाई भाव— स्थाई भाव ऐसे भाव होते हैं जो किसी भी प्रकार की संरचना में निश्चित रूप से विद्यमान रहते हैं और जिन पर किसी भी बाहरी तत्वों का बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ता है। मुख्य रूप से स्थाई भाव की संख्या 10 होती है जो निश्चित रूप से ही रति, शोक, क्रोध, भय, उत्साह, हास्य इत्यादि है।
- संचारी भाव— रस के इस मुख्य भाव के माध्यम से मन के अंदर उत्पन्न होने वाले विकारों को समझा जा सकता है। संचारी भाव ऐसे भाव होते हैं जो निश्चित रूप से ही समाप्त होते हैं और शुरू भी हो सकते हैं। मुख्य रूप से संचारी भाव की संख्या 33 होती हैं जिसमें मुख्य चिंता, स्मृति, आलस्य, दीनता, आवेग, निर्वेद, शंका, उग्रता, मोह, निद्रा, विषाद, जड़ता इत्यादि हैं।
- अनुभाव— रस के विभिन्न अंगों में अनुभाव का विशेष स्थान है जो शारीरिक क्रियाओं को सही तरीके से बताता है जिसमें कायिक, मानसिक, सात्विक मुख्य रूप से अंग माने गए हैं।
- विभाव—- यह स्थाई भाव के द्वारा उत्पन्न कारक हैं जो कहीं ना कहीं रस को भी इंगित करते हैं। यह मुख्य रूप से दो होते हैं जिनमें आलंबन और उद्दीपन मुख्य हैं।
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रस के मुख्य भेद | Ras Ke Prakar With Examples In Hindi
अगर रस का सही तरीके से अध्ययन किया जाए तो हम देखते हैं कि रस के मुख्य रूप से 10 भेद होते हैं जो हमारे काव्य, ग्रंथ और कविताओं में विशेष स्थान हासिल करते हैं।
श्रृंगार रस | Shringar Ras Ki Paribhasha Aur Udaharan
यह रस का मुख्य भेद होता है जिसके माध्यम से नायक और नायिकाओं के बीच संबंधों को बयां किया जाता है। रस के अंतर्गत सौंदर्य के प्रति चित्रण किया जाता है। इसके अतिरिक्त नायक और नायिकाओं के प्रेम संबंधों का भी विवरण उचित शब्दों में किया जाता है। इसके अंतर्गत दो प्रकार के श्रृंगार रस होते हैं जो संयोग श्रृंगार रस और वियोग श्रृंगार रस कहलाते हैं।
संयोग श्रृंगार रस वह होते हैं, जो नायक और नायिकाओं के संयोग की स्थिति का वर्णन करते हैं और जिसे पढ़ने के बाद हमारे मन में भी वैसे ही भावनाएं उमड़ने लगती हैं। उसी प्रकार से वियोग श्रृंगार रस वह रस होता है, जो नायक और नायिकाओ के वियोग का चित्रण करता है और जिसके बाद हमें एक अलग ही अनुभूति होती है और हम खुद को उस स्थिति में रखने पर मजबूर हो जाते हैं।
उदाहरण : दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुन्दर मन्दिर माहीं।
हास्य रस | Hasya Ras Ki Paribhasha Aur Udaharan
यह एक ऐसा रस है, जो किसी भी प्रकार के प्राकृतिक घटना या व्यक्ति की बारे में उसकी विस्तृत जानकारी को देखते हुए हंसी उत्पन्न करता है जिसे हास्य रस कहा जाता है। मुख्य रूप से हास्य रस का स्थाई भाव हंसी होती है, जो किसी भी प्रकार की रचना से हंसी के भाव उत्पन्न कर देती है।
उदाहरण– जब धूमधाम से जाती है बारात किसी की सज धज कर मन करता धक्का दे दूल्हे को जा बैठूँ घोड़े पर।
करुण रस | Karun Ras Ki Paribhasha Aur Udaharan
मुख्य रस में से एक रस करुण रस होता है, जो किसी व्यक्ति से व्यक्ति या वस्तु के विनाश हो जाने से मन में उत्पन्न भाव के अंतर्गत करुण रस उत्पन्न होता है और रस का स्थाई भाव शोक होता है। यह ऐसा रस है, जो बहुत सारे भावनाओं को अपने अंदर समेट कर रखता हैं और जिसके माध्यम से विशेष रूप से वाक्यों की रचना होती है।
उदाहरण— हे प्रभु राम प्राण प्यारे जीवित रहेंगे अब हम किसके सहारे।
रौद्र रस | Raudra Ras Ki Paribhasha Aur Udaharan
जब भी रौद्र रस का मुख्य रूप से अपने पंक्तियों में उपयोग किया जाता है तो ऐसे समय में मन में क्रोध के भाव उत्पन्न होते हैं जिसके माध्यम से रस की निष्पत्ति हो जाती है।
रौद्र रस का स्थाई भाव क्रोध होता है, जो किसी बात या भाव के माध्यम से हमारे मन में उत्पन्न हो जाता है और एक नए रस की निष्पत्ति होती है।
उदाहरण— सब शोक अपना भूलकर करतल युगल मलने लगे। श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
वीर रस | Veer Ras Ki Paribhasha Aur Udaharan
यह एक ऐसा रस होता है, जिसके सुन लेने से ही मन में उत्साह के भाव उत्पन्न होता है और हृदय में अलग प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। इस वीर रस का स्थाई भाव उत्साह होता है जिसके सुनने से ही मन में कई प्रकार के उत्साह के भाव निश्चित रूप में दिखाई देते हैं।
जब भी वीरगति उत्पत्ति होती है तो विभाव, अनुभाव और संचारी भाव का संयोग होता है और नए रस की उत्पत्ति हो जाती है।
उदाहरण — खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने तो सुनी कहानी थी।
भयानक रस | Bhayanak Ras Ki Paribhasha Aur Udaharan
भयानक रस एक ऐसा रस होता है जिसके अंतर्गत हमारे हृदय में भय उत्पन्न हो जाता है। यह मुख्य रूप से किसी प्राकृतिक दृश्य को देखकर या किसी चलचित्र को देखकर हम महसूस करते हैं।
भयानक रस का स्थाई भाव भय होता है जो सभी प्रकार के रस के अंगों के माध्यम से निर्मित होते हैं।
उदाहरण – “एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मृगराय। विकल बटोही बीच ही, परयों मूरछा खाय।।”
वीभत्स रस | Bhayanak Ras Ki Paribhasha Aur Udaharan
यह एक ऐसा रस होता है जिसके माध्यम से मन में घृणा की भावना उत्पन्न होती है और जहां पर ऐसी चीजों की बारे में व्याख्या की जाती है जो निश्चित रूप से ही सही नहीं मानी जाती है।
ऐसे में विभक्त रस का स्थाई भाव घृणा होता है। इसके माध्यम से मन के अंदर चल रहे भाव को बाहर लाने का कार्य किया जाता है और अपने बातों को अंजाम दिया जाता है।
उदाहरण — सिर पर बैठो काक, आंखें दोऊँ खात निकारत।
खींचत जीभहि स्यार अतिहि, आनंद उर धारत।
अद्भुत रस | Adbhut Ras Ki Paribhasha Aur Udaharan
यह एक ऐसा रस है जिसके माध्यम से हम अलौकिक घटनाओं का वर्णन करते हैं जिसे सुनकर या देख कर मन में अद्भुत रस की उत्पत्ति होती हैं। ऐसे में अद्भुत रस का स्थाई भाव निहित होता है जिसमें सभी प्रकार के अंगों को निर्वाचित किया जाता है।
उदाहरण— देख समस्त विश्व सेतु से मुख में यशोदा विस्मय में सिंधु में डूबी।
शांत रस | Shant Ras Ki Paribhasha Aur Udaharan
शांत रस एक ऐसा रस है जिसमें संसार को विभिन्न प्रकार से अनुभव करते हुए हृदय में तत्वज्ञान को जागृत करने के लिए शांत रस का निष्पादन होता है जिसका भाव निर्वेद है। यह मुख्य रूप से हृदय में उठने वाली ध्वनियों के माध्यम से भी जाहिर किया जाता है जिसमें शांत रस की उत्पत्ति होती है।
उदाहरण — चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोय, दुइ पाटन के बीच में साबुत बचा न कोई।
वात्सल्य रस | Vatsalya Ras Ki Paribhasha Aur Udaharan
यह एक ऐसा रस है जिसके माध्यम से बच्चों की आनंदमई क्रियाओं का वर्णन किया जाता है जिसे देखकर मन में प्रसन्नता आती है और प्रेम के भाव उत्पन्न होते हैं।
मुख्य रूप से यह माता पिता, पिता पुत्र, माता पुत्र के बीच में उत्पन्न होता है जहां पर मन में प्रेम की भावना के साथ-साथ प्रेम की भावना भी आती है।
उदाहरण— यशोमती मैया से बोले नंदलाला राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला ?
संबंधित सवाल ( FAQ)
रस की अनुभूति कब होती है ?
जब काव्य के अंतर्गत किसी विशेष अनुभूति या चित्रण का उल्लेख किया जाता है ऐसी स्थिति में रस की अनुभूति होती है, जो कहीं ना कहीं हमारे हृदय के अंदर जाकर एक नई अभिव्यक्ति उत्पन्न करती है।
रस के कितने अंग होते हैं ?
रस के कुल 4 अंग होते हैं जिनमें से स्थाई भाव, संचारी भाव, अनुभाव और विभाव होते हैं जो किसी भी हिंदी साहित्य में विशेष रूप से योगदान देते हैं।
रस के कुल कितने भेद होते हैं ?
रस के कुल 10 भेद होते हैं जिनका उल्लेख समय समय पर किया जाता है और प्रत्येक भेद में एक नई अनुभूति प्राप्त होती है, जिसके माध्यम से अपनी रचनाओं को सुदृढ़ बनाया जा सकता है।
वात्सल्य रस क्या होता है ?
वात्सल्य रस ऐसा रस होता है जिसके माध्यम से शिशु क्रियाओं को प्रेम पूर्वक निहारा जाता है और साथ ही साथ शिशु की होने वाली क्रियाओं के माध्यम से हृदय को अच्छा महसूस होता है।
हिंदी साहित्य में रस का महत्व क्या है ?
हिंदी साहित्य में रस का विशेष महत्व माना गया है जहां पर बिना रस के किसी भी वाक्यांश या काव्य की रचना करना मुमकिन नहीं है। क्योंकि रस के प्रत्येक भेद के माध्यम से ही वाक्यों को एक नया आयाम दिया जाता है जिसके माध्यम से कोई भी वाक्य कहीं अधिक गहनता से पढ़ा और समझा जाता है।