फंगस एक ऐसा इन्फेक्शन है जो कि दुनिया में बहुत पहले से मौजूद रहा है | यह फंगस कोरोना वायरस के आने से पहले भी था और इसके बाद भी रहेगा | फंगस कोई नयी तरह की बीमारी नहीं है, यह धरती पर हमेशा से मौजूद रहा है | फंगस के जितने भी रंग है, यह सभी कमजोर इम्युनिटी वाले व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर उसे पहले भी बीमार करते थे, और आज भी बीमार कर रहे है | पहले यह सिर्फ कमजोर इम्युनिटी वाले मरीज जैसे :- कैंसर, किडनी की गंभीर परेशानियां, शुगर की समस्या आदि से ग्रसित मरीजों हावी होते थे |
आज कल हर जगह ब्लैक, वाइट और येलो फंगस के बारे में अधिक सुनने को मिल रहा है | लोगो को कोरोना से ज्यादा इस फंगस से डर लगने लगा है, ऐसे में अब सवाल यह उठता है,कि क्या यह फंगस वाकई में इतना खतरनाक है जितना लोग इससे डरे रहे है ? क्या सच में हम सभी को इससे डरने की जरूरत है? किन लोगो को इसका खास ध्यान रखना चाहिए ? इससे बचाव और तरीके से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारियों के बारे में ब्लैक फंगस, वाइट फंगस, येलो फंगस क्या होता है, लक्षण, उपचार की विधि को इस पोस्ट में बताया गया |
कोरोना वायरस (Coronavirus) क्या है
वायरस (Virus)
यह नाम तो आप सभी ने बहुत बार सुना होगा,वायरस को लेटिन भाषा में Virion कहा जाता है, जिसका अर्थ Poison यानि जहर होता है | यह वायरस इतने सूक्ष्म होते है, इन्हे नंगी आँखों से तो दूर साधारण माइक्रोस्कोप से भी नहीं देखा जा सकता है | इसके लिए विशेष प्रकार के शक्तिशाली इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की सहायता से देख सकते है | वायरस को जीवित रहने के लिए होस्ट यानि मानव शरीर की आवश्यकता होती है, जब तक यह वायरस शरीर के बाहर होता है तब तक तो यह पूरी तरह से निर्जीव होता है, किन्तु यह जैसे ही किसी शरीर में प्रवेश कर जीवित कोशिकाओं (Cells) में पहुँचता है, यह सक्रिय हो जाता है |
वायरस जीवित और मृत के बीच की कड़ी को कहते है,यह वायरस जैसे ही किसी कोशिका में प्रवेश करता है इसमें जान आ जाती है | इसके बाद यह धीरे-धीरे अन्य कोशिकाओं में फैल कर अपनी संख्या बढ़ा लेता है | यह 2 से 4 दिनों में अपनी संख्या को कई गुना बढ़ा कर अरब – ख़रब तक पंहुचा जाता है | यदि शरीर का इम्यून सिस्टम इस पर शुरुआत में ही काबू पा लेता है, तो यह वायरस वही थम जाता है और आगे नहीं बढ़ पाता है | इसके अलावा मामूली बुखार या बदन दर्द होकर मामला सामान्य हो जाता है, यदि हमारा इम्यून सिस्टम इसे रोक पाने में सक्षम नहीं होता है तो यह बुखार और बदन दर्द कई दिनों तक चलता है | कई तरह की दवाइयों का सेवन भी करना पड़ता है, जिससे शरीर में मौजूद ऐंटिबॉडी वायरस को हरा सके और शरीर को नुकसान होने से बचाया जा सके |
कभी-कभी यह ऐंटिबॉडी जो पहले से शरीर में मौजूद होती है, वायरस को हरा पाने में सक्षम नहीं होता है, जैसा कि हमें कोरोना के मामले में देखने को मिल रहा है | वायरस की समय अवधि होती है, जिसमे यह 7 से 10 दिनों की अपनी लाइफ को पूरा करके ही खत्म होता है, लेकिन जब तक यह वायरस शरीर में होता है, उस दौरान यह शरीर को बहुत हानि पहुँचता है | इससे बचाव के लिए वैक्सीनेशन को सबसे ज्यादा कारगर माना जाता है | इन वायरस पर ऐंटिबायोटिक का कोई खास असर नहीं होता है| इनमे से ही कुछ बीमारिया है- फ्लूऔर कैंसर की किस्में आदि |
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बैक्टीरिया (जीवाणु) क्या है – (Bacteria)
अलग-अलग तरह के जीवाणु (Bacteria) तो हमेशा ही हवा में मौजूद रहते है | बैक्टीरिया आकार में वायरस से काफी बड़े होते है, किन्तु इन्हे भी नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता है | यह बैक्टीरिया इंसान में बीमारी पैदा करने में माहिर होते है | यह अगर फेफड़ो में पहुंच जाये तो निमोनिया जैसी बीमारी को जन्म दे सकते है | हमारे शरीर में मौजूद ऐंटिबॉडी ही इनसे लड़ने का काम करती है | यदि शरीर की इम्युनिटी कमजोर होती है, तो बैक्टीरिया को पनपने का मौका मिल जाता है तथा वह अपना घर भी बना लेता है |
यदि बैक्टीरिया शक्तिशाली होता है, तब भी 2 से 3 दिन दवा लेने से ठीक किया जा सकता है | शरीर का इम्यून सिस्टम के कमज़ोर होने से बैक्टीरिया को पनपने का मौका मिल जाता है, जैसा कि कोरोना की वजह से कमजोर इम्यूनिटी में निमोनिया और टाइफाइड के बैक्टीरिया को अपनी संख्या बढ़ाने का मौका मिल रहा है | कोरोना संक्रमित मरीजों में यह दोनों बीमारिया सबसे ज्यादा देखने को मिलती है |
प्रोटोजोआ (Protozoa)
पेट में जो कृमि होते है, यह प्रोटोजोआ ग्रुप में उपस्थित होते है | प्लाज्मोडियम की वजह से मलेरिया होता है, जब मादा एनोफिलीस मच्छर काटती है, तब यह मनुष्य के रक्त में प्लाजमोडियम प्रदार्थ को छोड़ देती है जिससे मलेरिया हो जाता है | वह गन्दा पानी जिसमे आँखों से न दिखने वाले इनके अंडे मौजूद हो उसको पी लिया जाये या फिर गन्दा खाना खा लिया जाये जिससे पेट में पहुंचकर नुकसानदायक सिद्ध होते है | अमीबा की वजह से डिसेंट्री होती है,पेट में कृमि की उपस्तिति की वजह से ऐसी परेशानिया देखने को मिलती है |
यह धरती पर प्रारम्भ से ही मौजूद है, इसलिए इसे प्रारम्भिक जीव भी कहते है | यह ज्यादातर पैरासाइट होते है, जो कि दूसरों के शरीर में उपस्थित होकर उनसे न्यूट्रिशन लेते हैं, और उन्हें हानि भी पहुंचाते हैं | इनसे बचाव के लिए भी ऐंटिबॉयोटिक और दूसरी दवाएं सही तरीके से काम करता है |
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फंगस क्या है (What is Fungus)
सभी प्रकार के फंगस एक ही ग्रुप में आते हैं, जिसे फंजाई कहते हैं। इसमें ब्लैक फंगस, वाइट फंगस, येलो फंगस, ग्रीन फंगस, मशरूम (जिसका सेवन हम सब्जी के रूप में करते हैं), यीस्ट (ब्रेड बनाने में इसका उपयोग होता है, ब्रेड के ख़राब हो जाने पर यह ऊपर दिखाई देने लगता है) आदि आते हैं। लोगो में कोरोना से ज्यादा इस फंगस का डर देखने को मिल रहा है। स्किन के ऊपर फंगस डिजीज का होना आम बात है, जिसे हम दाद, खाज, खुजली के नाम से जानते हैं। चूंकि यह स्किन के ऊपर होती हैं, इसलिए कभी भी जानलेवा नहीं होती। दवाओं के इस्तेमाल से यह चंद दिनों या हफ्तों में ठीक भी हो जाता हैं |
किन्तु जब इन्हें पहले जैसा वातावरण मिल जाता है, तो यह स्किन फंगसकी बीमारी कई बार फिर से वापस आ जाती हैं। यदि फंगस शरीर के अंदर प्रवेश कर ले तो उसे भी वहां पनपने के लिए मनचाहा वातावरण चाहिए होता है | यदि उसे यह वातावरण मिल जाता है, तो बड़ी परेशानी खड़ी हो जाती हैं। ब्लैक फंगस, वाइट या येलो फंगस या फिर आगे किसी और रंग का फंगस इसी के उदाहरण हैं।
फंगस का इतिहास (History of Fungus)
फंगस इस धरती पर इंसानों से भी पहले से मौजूद है। साइंटिफिक रिसर्च के अनुसार यह कम से कम डेढ़ अरब साल पहले से धरती पर उपस्थित है। फंगस में पौधों और जीवों दोनों के गुण पाए जाते हैं। पौधों के सेल में एक सख्त बाहरी कवच होता है, जिसे सेल वॉल कहते हैं। यही सेल वॉल फंगस में भी पाया जाता है। क्लोरोफिल कमी के चलते फंगस पौधों की तरह अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते है। इन्हें भोजन के लिए सड़े-गले पदार्थों पर निर्भर रहना पड़ता है। यही वजह है कि कुछ साइंटिस्ट इसे पौधों और जीवों को जोड़ने वाली कड़ी भी कहते हैं।
सड़ी-गली चीजे जैसे सड़ा हुआ खाना,सड़े पत्ते, नमी आदि जगहों पर फंगस पनपता है। घर में अगर सब्जियां, ब्रेड, दूध आदि सड़ गए हो और उनमें बदबू भी आने लगे तो समझ ले की फंगस पनप चुका है। ऐसी जगहों पर पनपने वाले फंगस को यीस्ट कहते हैं।
जिस तरह पौधों में परागण के लिए फूलों से परागकण हवा में चले जाते हैं, और उड़ते हुए ही दूसरे फूलों तक पहुंच जाते हैं। उसी प्रकार जब फंगस भी पक जाते हैं तो इसके स्पोर्स फट जाते हैं और हवा में उड़ते रहते हैं। ये स्पोर्स बहुत ही सूक्ष्म आकर के होते हैं।इन्हे साधारण आँखों से नहीं देखा जा सकता है, किन्तु साधारण माइक्रोस्कोप से इन्हे देख सकते हैं।
फंगस शरीर में कैसे प्रवेश करता है (How Does Fungus Enter the Body)
फंगस इंसान के शरीर में अमूमन सांस या खानपान के माध्यम से पहुंचता है। इसे रोकने का काम सबसे पहले हमारे नाक के सुराख में मौजूद बाल करते हैं। यदि फंगस यहां रुक जाता है तो हमारे नाक के सुराखों में हलकी खुजली होती है और हम उसे साफ कर निकल देते हैं,और अगर यह फंगस आगे बढ़ते हुए नाक के अंदरूनी हिस्से में पहुंच जाता है तो नाक के अंदर की पाइप में मौजूद नेजल सिलिया (छोटी बालों के आकार का जो अच्छी चीजों को अंदर और बेकार चीजों को बाहर निकालने में मदद करती है) के जरिए बाहर निकालने की कोशिश करती है।
अगर निकालने में सफल हो गए तो इसके साथ छींक भी आ सकती है। छींक आना भी हमारे इम्यून सिस्टम का ही हिस्सा है। अगर फिर भी कुछ स्पोर्स नाक में रह जाते है, तो फिर नाक से पानी आने लगता है जिससे यह फंगस बाहर निकल आता हैं। शरीर इस तरह के काम तभी कर पाता है जब शरीर का इम्यून सिस्टम ठीक तरह से काम कर रहा हो। यदि इम्यून सिस्टम सही तरह से कार्य नहीं करता है, तो फंगस के स्पोर्स को बाहर निकालने में शरीर काम नहीं कर पाता है, जिसकी वजह से स्पोर्स शरीर के अंदर पहुंचकर पनपने लगते है, और वही अपना घर बना लेते है |
फंगस इन्फेक्शजन से जुड़ी 5 खास बातें
- यह इन्फेक्शन कोरोना कल से पहले भी था और आगे भी रहेगा, इस फंगस इन्फेक्शन का शिकार कुछ कैंसर और ट्रांसप्लांट के मरीज होते रहे है | कोरोना से ठीक हुए केवल 1 से 2 फीसदी मरीजो को ही इस फंगस इन्फेक्शन का खतरा है |
- वह व्यक्ति जिन्हे शुगर नहीं है, और न ही कभी ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ी हो, तथा बुखार भी 5 दिन में ठीक हो गया हो | स्टेरॉइड की हेवी डोज नहीं ली हो, ऐसे व्यक्तियों को फंगस इन्फेक्शन का खतरा नहीं होता है |
- कोरोना संक्रमित मरीज जिनकी इम्युनिटी काफी कमजोर हो गई है, ऐसे मरीजों में फंगस इन्फेक्शन देखने को मिल रहा है | इसलिए सभी को इससे डरने की जरूरत नहीं है, कमजोर इम्युनिटी वाले व्यक्तियों को इससे ज्यादा खतरा है, किन्तुसभी को साफ – सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए |
- वह मरीज जो अस्पताल से घर वापिस आये है, या घर में ही ऑक्सीजन और हेवी डोज स्टेरॉइड की सहायता से ठीक हुए है | उन्हें 4 हफ्तों तक अधिक समय तक मास्क या रुमाल से मुँह को ढककर रखना चाहिए | फंगस इन्फेक्शन के स्पोर्स कोरोना की तुलना में इतने बड़े होते है,कि उन्हें सामान्य रुमाल से मुँह को ढककर बचाव किया जा सकता है |
- कोरोना के इलाज से दौरान बिना डॉक्टरके परामर्श के कभी दवा न ले, इसमें स्टेरॉइड के इस्तेमाल को विशेष रूप से डॉक्टर की सलाह से ही लें, क्योकि स्टेरॉइड के हेवी डोज से इम्युनिटी कमजोर हो जाती है |
कोरोना ने देश के लाखो लोगो को प्रभावित किया है. जिससे लोगो की इम्युनिटी पर काफी असर हुआ जिनकी संख्या हजारो में है, इस लिस्ट में वह लोग आते है, जिन्हे कई दिनों तक ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी तथा स्थिति और गंभीर होने पर उन्हें वेंटिलेटर और ICU में तक रखना पड़ा, इनमे से कुछ लोगो के शरीर में फंगस के स्पोर्स पहुंचकर गंभीर बीमारियों को जन्म दे रहे है |
कीटाणु जिनकी वजह से शरीर बीमार होता है |
- वायरस
- बैक्टीरिया
- प्रोटोजोआ
- फंगस
फंगस के प्रकार (Type of Fungus)
ब्लैक फंगस (Black Fungus)
कोरोना के बाद यदि किसी चीज ने लोगो में सबसे ज्यादा डर बनाया है तो वह है ब्लैक फंगस | ब्लैक फंगस की वजह से ही म्यूकर माइकोसिस नामक बीमारी होती है | इसके स्पोर्स नाक के द्वारा ही शरीर में प्रवेश करते है | कमजोर इम्यूनिटी के कारण ही यह नाक के भीतर, सांस की नली में या फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं, अंदर पहुंचने के बाद यह पनपने लगते हैं और हाईफी का निर्माण करते हैं। फंगस को सरल भाषा में इस तरह से समझ सकते है कि जब पौधे के बीज तब तक सोते रहते है |
जब तक उन्हें पानी न मिले जैसे ही उन्हें पानी मिल जाता है, वह सक्रिय होकर अंकुरित होने लगते है | यही प्रक्रिया ब्लैक फंगस समेत सभी फंगस में होती है, यह मानव शरीर में शुगर और कमजोर इम्यूनिटी को पाकर पनपने लगती है, और पत्ती की भांति ही हाइफी बनाने लगते हैं। यह हाइफी जहां पर चिपकते हैं, वहां के टिशू को सड़ा कर नष्ट करने लगते हैं। यदि इसे तुरंत ही इंजेक्शन या फिर ऑपरेशन के द्वारा नहीं निकाला गया तो यह मरीज की जान तक ले लेते है |
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Symptoms of Fungus (लक्षण)
- नाक के भीतरी हिस्से में पपड़ी बनने लगती है |
- चेहरे के एक तरफ सूजन आ जाती है |
- नाक से काले रंग का तरल निकालने लगता है |
- नाक का बंद होना |
- छाती में दर्द होना |
- साइनस का बुरा हाल हो जाना |
- नाक के ऊपरी हिस्से पर काले घाव का हो जाना |
- बलगम में काले रंग की उपस्थिति |
- लगातार बुखार का रहना।
- आंख, आंखों के नीचे की हड्डी, सिर आदि में तेज दर्द रह सकता है।
- एक के बजाय दो दिख सकते हैं।
वाइट फंगस
यह एक आम तरह का फंगस है। इसे कैंडिडा भी कहते हैं, अगर सफ़ेद फंगस कमजोर इम्यूनिटी वाले शख्स के अंदर और खून में पहुंच जाए तो यह दिमाग, आंख आदि जगहों पर चिपककर बढ़ने लगता हैं। यह ब्लैक फंगस की अपेक्षा अधिक तेजी से फैलता है, इसलिए यह ब्लैक फंगस से अधिक खतरनाक माना जाता है,किन्तु मरने की दर से ब्लैक फंगस ज्यादा खतरनाक है।
वाइट फंगस की एक प्रजाति इनवेसिव कैंडिडा को वाइट फंगस में सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। क्योकि इसके बारे में शुरुआत में पता नहीं चल पाता। सामान्य तौर पर लोगों की जीभ और तालू पर सफेद धब्बे देखने को मिलते हैं। महिलाओं में वजाइनल इंफेक्शन इसी वाइट फंगस की वजह से होता है। इन जगहों पर ये ज्यादा परेशानी पैदा नहीं करते, किन्तु अगर यह खून में पहुंच जाये तो परेशानी को बढ़ा सकते है |
वाइट फंगस लक्षण :-
- सिर दर्द होना |
- काफी तेज सिहरन होती है।
- तेज बुखार और इंफेक्शन की जगह पर दर्द हो सकता है।
येलो फंगस
इस तरह के फंगस के मरीज बहुत ही कम देखने को मिलते है | हाल ही में यूपी के गाजियाबाद में येलो फंगस के मरीज मिले है | इस तरह का फंगस रेपटाइल्स (छिपकली जैसे जीवों में) देखने को मिलते है | यह फंगस जिस रेपटाइल्स को हो जाता है वह बच नहीं पता और उसकी मृत्यु हो जाती है | यह फंगस शरीर में जख्म बना देता है |
येलो फंगस के लक्षण :-
- नाक का बंद हो जाना |
- शरीर में बहुत ज्यादा दर्द होना |
- पल्स रेट बढ़ जाना |
- बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस होना।
फंगस से बचाव के लिए जरूरी टिप्स
- घर में गंदगी को बिलकुल जमा न होने दें।
- सब्जियों को अच्छी तरह ढक कर रखें।
- यदि आप मटके का पानी पीते हैं तो उसे भी अच्छी तरह ढक कर रखें तथा दूसरे या तीसरे दिन उसे अंदर और बाहर अच्छी तरह साफ करें।
- बासी खाना खाने से बचे।
- पेड़-पौधों से दूर रहे, क्योकि फंगस के स्पोर्स पौधों पर ज्यादा मिलते हैं। पौधों की जड़ें जिस गमले की मिट्टी में लगी होती हैं, हम वहां अक्सर पानी देते हैं। फंगस अधिकतर नमी में ही पनपता है |
- मिट्टी को छूने से बचे |
- घरों में सीलन वाली जगहों की मरम्मत करवाए सीलन में फंगस के बढ़ने का खतरा ज्यादा होता है।
- गीला मास्क या रुमाल के इस्तेमाल से बचे, इन पर फंगस के स्पोर्स के चिपकने का खतरा ज्यादा होता है।
- घरो में तेज धूप और ताजी हवा के लिए घर की खिड़कियों और दरवाजों को पूरा खोल दें।
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