शीतयुद्ध (Cold War) एक ऐसा युद्ध होता है, जिसमे किसी प्रकार अस्त्र – शस्त्रों का प्रयोग नहीं होता है | यह युद्ध डायरेक्ट यानि की प्रत्यक्ष न होकर, अप्रत्यक्ष रूप से होता है | इस युद्ध के आरम्भ की कोई तारीख निश्चित नहीं होती है, क्योंकि यह एक कूटनीतिक युद्ध है | केवल इस युद्ध को अनुमान से मापा जा सकता है कि यह कब तक चला है | इस युद्ध में किसी भी प्रकार के सैनिक या देश के नागरिक घायल या युद्ध में मृत्यु नहीं होती है |
लेकिन कूटनीतिक युद्ध होने के कारण इसमें एक शक्तिशाली देश दूसरे देश का बड़ा नुक्सान अवश्य करने में सफल हो सकता है | जिसे एक प्रकार से कूटनीतिक विजय भी कहा जा सकता है | जब यह युद्ध आरम्भ हो जाता है तब विषय के समस्त देश दो गुटों में बंट जाते है | वर्तमान में अमेरिका और चीन की स्थिति के मद्देनजर इस युद्ध के कयास लगाए जा रहे है | इस युद्ध की एक विशेषता यह भी है की यह बहुत लम्बे समय तक भी चल सकता है, क्योंकि इसमें अस्त्र शस्त्रों के प्रयोग न होने की वजह से इसकी कोई सीमा नहीं रहती है | यदि आप भी शीतयुद्ध (Cold War) किसे कहते हैं, परिभाषा, उत्पत्ति, चरण, कारण और परिणाम (उद्धरण सहित) जानना चाहते है तो यहाँ पर इसके विषय में जानकारी दी जा रही है |
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शीतयुद्ध (Cold War) की परिभाषा
कई इतिहासकारों को माने तो इसे सरकार चलाने की दो तरह की व्यवस्थाओं यानि कि पूंजीवाद और साम्यवाद के मध्य लड़ाई के तौर पर भी देखते आये हैं |
शीत युद्ध (Cold War) एक ऐसा वाक युद्ध हुआ जो केवल कागज के गोलों, पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो और प्रचार साधनों से ही लड़ा गया | इस युद्ध के दौरान न तो कोई गोली चली या अस्त्र – शस्त्र का प्रयोग हुआ और न ही इसमें किसी प्रकार की जन हानि हुई | अमेरिका और सोवियत संघ (रूस) दोनों महाशक्तियों ने अपना – अपना सर्वस्व कायम रखने के लिए विश्व के ज्यादातर हिस्सों में परोक्ष युद्ध लड़ते रहे | यह शीत युद्ध, शस्त्रयुद्ध में न बदलें इसे रोकने के लिए सभी उपाय भी किये गए | यह केवल एक कूटनीतिक युद्ध बनकर रह गया था | जिसमें दोनों महाशक्तियों ने एक दूसरे को नीचा दिखाने के सभी उपाय कर डालें थे |
के.पी.एस. मैनन के अनुसार “शीत युद्ध दो विरोधी विचारधाराओं पूंजीवाद और साम्राज्यवाद (Capitalism and Communism), दो व्यवस्थाओं बुर्जुआ लोकतन्त्र तथा सर्वहारा तानाशाही (Bourgeoise Democracy and Proletarian Dictatorship), दो गुटों – नाटो और वार्सा समझौता, दो राज्यों अमेरिका और सोवियत संघ तथा दो नेताओं – जॉन फॉस्टर इल्लास तथा स्टालिन के बीच युद्ध था जिसका प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ा |”
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शीत युद्ध (Cold War) की उत्पत्ति और इसके कारण
द्वितीय विश्व युद्ध के समय ही शीत युद्ध (Cold War) होने की स्थिति बनने लगी थी। उस समय दोनों देशों के मध्य यानि कि सोवियत संघ (रूस) और अमेरिका जो सहयोग की भावना थी वह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान साफ़ दिखाई देने लगी थी। इस तरह के पारस्परिक मतभेद शीत युद्ध (Cold War) की मुख्य वजह बन गए थे, शीत युद्ध के उत्पत्ति के प्रमुख कारण इस प्रकार से माने जाते है :-
- पूंजीवादी और साम्यवादी विचारधारा का प्रसार मुख्य वजहों में से एक थी |
- सोवियत संघ द्वारा याल्टा समझौते का पालन न करना |
- सोवियत संघ और अमेरिका के वैचारिक मतभेद विश्व स्तर पर होना |
- सोवियत संघ का एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में एकदम से उभरना |
- ईरान में सोवियत का हस्तक्षेप होना |
- टर्की में सोवियत संघ खुला हस्तक्षेप
- यूनान में साम्यवादी प्रसार होना |
- द्वितीय मोर्चे सम्बन्धी विवाद बढ़ना |
- तुष्टिकरण की नीति करना |
- सोवियत संघ द्वारा बाल्कान समझौते की उपेक्षा करना |
- अमेरिका का परमाणु कार्यक्रम भी एक वजह बनी |
- परस्पर विरोधी प्रचार विश्व स्तर पर रहा |
- लैंड-लीज समझौते का समापन भी वजह बना |
- फासीवादी ताकतों को अमेरिकी सहयोग मिलना |
- बर्लिन विवाद इसका कारण रहा है |
- सोवियत संघ द्वारा वीटो पावर का बार-बार प्रयोग करना |
- संकीर्ण राष्ट्रवाद पर आधारित संकीर्ण राष्ट्रीय हित भी एक कारण माना जा सकता है |
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शीतयुद्ध (Cold War) के चरण
दुनिया में शीत युद्ध की संभावना धीरे – धीरे 1917 में ही झलक दिखने लगी थी, परन्तु द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत यह स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा था | दोनों महाशक्तियों के मध्य अशांति और आलोचना की वजह से पूरे विश्व में भय का माहौल बना हुआ था | इसके प्रमुख चरणों की व्याख्या कुछ इस प्रकार है:-
- शीत युद्ध के विकास का प्रथम चरण 1946 से 1953 तक माना गया है |
- इसके बाद शीत युद्ध का दूसरा चरण 1953 से 1963 तक माना जाता है |
- शीत युद्ध का तीसरा चरण – 1963 से 1979 तक कहा जाता है परन्तु यह चरण दितान्त अथवा तनाव शैथिल्य का काल भी माना गया है |
- शीत युद्ध का चौथा व अन्तिम काल व चरण – 1980 से 1989 तक रहा है | (कुछ विशेषज्ञ इसे 1991 ई० तक मानते है) |
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शीतयुद्ध (Cold War) के परिणाम
शीतयुद्ध (Cold War) का असर पूरी दुनिया पर देखने को मिला, कुछ देशों में इसका असर कम रहा तो कहीं पर बहुत अधिक रहा | इस युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के साथ-साथ पूरे अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर भी इसका बहुत बुरा प्रभाव देखने को मिला | इसके कारण ही विश्व के कई देशों में आतंकवादी संगठनों को भी बढ़ावा मिला, आतंकवाद की देन शीत युद्ध को ही कहा जा सकता है | इसके अलावा कई देशों के व्यापार और उनकी अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा असर रहा, जिससे अर्थव्यवस्था काफी दयनीय स्थिति में पहुंच गई |
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