सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) का क्या मतलब होता है



सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण ये दोनों ही ग्रहण अमावस्या के दिन पड़ते है, वहीं विज्ञान के मुताबिक, जब सूर्य व पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा आ जाता है तो चन्द्रमा के पीछे सूर्य का बिम्ब कुछ समय के लिए ढक जाता है, उसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। सूर्य ग्रहण पड़ने के समय पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करती है और चाँद पृथ्वी की।

इसके अलावा कभी-कभी ऐसी परिस्थित में चाँद, सूरज और धरती के बीच आ जाता है, जिसके बाद वह सूरज की कुछ या सारी रोशनी रोक लेता है और उसका  साया धरती पर फैल जाता है, जिसे सूर्य ग्रहण कहा जाता है। यदि आप भी सूर्य ग्रहण के विषय में जानना चाहते हैं, तो यहाँ पर आपको सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) का क्या मतलब होता है, सूर्य पर ग्रहण कैसे लगता है | इसकी विस्तृत जानकारी प्रदान की जा रही है |

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सूर्य ग्रहण (SOLAR ECLIPSE) का मतलब  

जब ग्रहण पड़ते समय चाँद सूरज को पूरी तरह ढँक लेता है। तो इस प्रक्रिया को पूर्ण-ग्रहण कहा जाता हैं। पूर्ण-ग्रहण धरती के बहुत कम क्षेत्र में ही देखा जाता है क्योंकि, यह ज़्यादा से ज़्यादा दो सौ पचास (250) किलोमीटर के सम्पर्क में आती है। इस क्षेत्र के बाहर केवल खंड-ग्रहण ही लोगों को दिखाई देता है | वहीं, जब चाँद, सूरज के सिर्फ़ कुछ हिस्से को ही ढ़कता है। यह स्थिति खण्ड-ग्रहण कहलाती है।

पूर्ण- ग्रहण के समय चाँद को सूरज के सामने से गुजरने में दो घण्टे लगते हैं। चाँद सूरज को पूरी तरह से, ज़्यादा से ज़्यादा, सात मिनट तक ढँक लेता है। उस समय के लिए आसमान में अंधेरा सा छा जाता है और दिन के समय भी रात हो जाती है।

सूर्य ग्रहण कितने प्रकार के होते है –

सूर्य ग्रहण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार से है –

  1. पूर्ण सूर्य ग्रहण |
  2. आंशिक सूर्य ग्रहण |
  3. वलयाकार सूर्य ग्रहण |

1. पूर्ण सूर्य ग्रहण

जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफ़ी पास रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और चन्द्रमा पूरी तरह से पृथ्वी को अपने छाया क्षेत्र में ले लेता है। तो  ऐसी स्थित में पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है | इसके फलस्वरूप सूर्य का पूरा पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाता है और पृथ्वी पर अंधकार हो जाता है | तब पृथ्वी पर पूरा सूर्य दिखाई नहीं देता है | इस प्रकार बनने वाला ग्रहण पूर्ण सूर्य ग्रहण कहलाता है।

2. आंशिक सूर्य ग्रहण

आंशिक सूर्यग्रहण तब होता है, जब चन्द्रमा सूर्य व पृथ्वी के बीच में इस प्रकार आता है,  कि सूर्य का कुछ ही हिस्सा पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है । ऐसी स्थित को आंशिक सूर्य ग्रहण कहा जाता  है | इसके अतिरिक्त इस तरह की प्रक्रिया हो जाने पर सूर्य का कुछ भाग ग्रहण ग्रास में तथा कुछ भाग ग्रहण से अप्रभावित हो जाता  है, जिसके कारण पृथ्वी के उस भाग में लगा ग्रहण आंशिक सूर्य ग्रहण कहलाता है।

3. वलयाकार सूर्य ग्रहण

सूर्य ग्रहण पड़ने के दौरान जब चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत अधिक दूरी पर रहते हुए भी पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और पृथ्व से देखने पर चन्द्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह  ढका हुआ नहीं नजर आता है  और सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता हुआ दिखाई देता है तो  कंगन आकार में बना सूर्यग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण कहलाता है।

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खगोल शास्त्रीयों के मत सूर्यग्रहण के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी 

  1. खगोल शास्त्रियों के मुताबिक,18 वर्ष 18 दिन की समयावधि में 41 सूर्य ग्रहण और 29 चन्द्रग्रहण होते हैं। एक वर्ष में 5 सूर्यग्रहण तथा 2 चन्द्रग्रहण तक पड़ने की संभावना रहती हैं।
  2. अगर किसी वर्ष 2 ही ग्रहण पड़ते हैं तो वो दोनो ही सूर्यग्रहण  होते है और यदि वर्षभर में 7 ग्रहण तक पड़ने की संभावना होती है तो वर्षभर में 4 से अधिक ग्रहण नहीं पड़ते है |
  3. प्रत्येक ग्रहण की एक खूबी होती है कि, वह 18 वर्ष 11 दिन बीत जाने पर पुन: दिखाई देता है लेकिन यह जरूरी नहीं होता है कि, वह अपने पहले के स्थान में ही हो , क्योंकि सम्पात बिन्दु निरन्तर चल रहे हैं।
  4. वैसे तो पृध्वी पर सूर्यग्रहण की अपेक्षा चन्द्रग्रहण अधिक देखे जाते हैं |
  5. चंद्र ग्रहण पृ्थ्वी के आधे से अधिक भाग में  ही दिखाई देते है इसलिए ये सूर्य ग्रहण की तुलना में अधिक दिखाई देते है जब कि सूर्यग्रहण पृ्थ्वी के बहुत बड़े भाग में प्राय सौ मील से कम चौडे और दो से तीन हजार मील लम्बे भूभाग में  दिखाई देते है | इसलिए उन्हें कम देखा जाता है और इसकी अपेक्षा वो चंद्र ग्रहण से अधिक दिखाई देता है |

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वैज्ञानिक दृष्टिकोण में सूर्य ग्रहण

  • लार्कयर नामक वैज्ञानिक नें 1968 में सूर्य ग्रहण के अवसर पर की गई खोज के सहारे वर्ण मंडल में हीलियम गैस की उपस्थिति का पता लगाया था।
  • उस वैज्ञानिक ने बताया है कि, सम्पूर्ण सूर्यग्रहण की वास्तविक अवधि अधिक से अधिक 11 मिनट ही हो सकती है उससे अधिक नहीं।
  • चन्द्रग्रहण तो अपने संपूर्ण तत्कालीन प्रकाश क्षेत्र में देखा जा सकता है, लेकिन सूर्यग्रहण अधिकतम 10 हजार किलोमीटर लम्बे और 250 किलोमीटर चौडे क्षेत्र में ही नजर आ सकता है |
  • वैज्ञानिकों को ग्रहण पड़ने के समय ही ब्राह्मंड में अनेकों विलक्षण एवं अद्भुत घटनाएं घटित और नये नये तथ्यों पर कार्य करने का अवसर प्राप्त होता है |

सूर्य पर ग्रहण कैसे लगता है

जब पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और इसके साथ ही वह  सूर्य के भी चक्कर लगाती है। जिस तरह धरती सूरज की परिक्रमा करती है, उसी तरह चंद्रमा भी पृथ्वी का चक्कर लगाता है और फिर जब दोनों अपनी-अपनी धूरी पर परिक्रमा करते हैं और कभी – कभी चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो पृथ्वी पर सूर्य आंशिक या पूर्ण रूप से  दिखाई नहीं देता है तो ऐसी स्थित में सूर्य पर ग्रहण लगना शुरू हो जाता है और समय के अनुसार यह ग्रहण खत्म होता है |

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